अच्छे दिन

झूठी आशा
झूठी दिलशा
कब तक देखेगें तमाशा?
मार्डन इण्डिया 
अच्छे दिन की बात करता है
जहाँ गरीब कंधें पर लाश ढोता है
धिक्कार है ऐसे दिन देखने वालों पर।
किसे कहें?
किसे सुनाएँ?
किसे दिखाए?
अच्छे दिन का झसा देकर
टाई सूट पहनकर
आँखों पर रंगीन चश्मा है।
इन्हें? 
इन्हें बेरंग कहाँ दिखता है?
कानों में इयर फोन लगाकर
झूठी तारीफ
चमचों, ठगों से सुनने वालों को
गरीब, कमजोर, दलित की आवाज कहाँ सुनाई देती है।
उठो 
नींद से जागो कोई तुम्हे पुकार रहा है।
अभी भी समय है
चेत जाओ जिम्मेदारो
अपना चश्मा उतार कर तो देखो
कानों से इयर फोन निकलकर तो सुनों।
ये
बेबस 
लाचार जब जाग जाएगें तो तुम्हें कही के नही छोड़ेंगे।
कैलाश मण्डलोई "कदंब"

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