अपनी बेकारी
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अपनी बेकारी
कितनी इस जीवन की,
करुणामय लाचारी
दवाई का खर्च
बीमार माँ, पत्नी,
असहाय पिता, जवान बहनें,
राशन पानी, फाके की स्थिति
फिर घर की दयनीय हालत अपनी बेकारी...
सोच रहा खड़ा व्यथित मन
मन के सूने आँगन में
दूर-दूर तक फैला
बेकारी का मरुस्थल
शायद कभी खत्म नहीं होगा।
चलते-चलते देखा उसने
पहुँच गया शहर के बीच
आस-पास थी
बड़ी-बड़ी इमारतें
दफ्तर थे, दुकानें थी,
भीड़ थी किंतु वह अकेला था
बेटा सोचता है
खुद को बेच दूँ या डाका डालूं?
कैलाश मण्डलोई "कदंब"
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