गैरों की नहीं अपनी
अपनों की बात करते है
युगों-युगों से ठगों के बीच
ठगाता आया
कोई पत्नी से ठगा गया
कोई पति से ठगा गया
कोई बहू से ठगा गया
कोई बेटे से ठगा गया
आखिर में तो सब
मौत से ठगें ही
जाने वाले है
मौत ठग ले, उसके पहले तू
इंसानियत से ठगा जा
किसी भूखे की, भूख मिटाते ठगा जा
किसी बेसहारा का, सहारा बन ठगा जा
तो घाटा भी क्या पड़ेगा?
अब ठगवाने को तुम्हारे पास
बचा भी क्या है?
युगों से तुम, ठगाते आये हो,
हारते आये हो।
एक बार एक हार और सही।
एक बार एक दाँव और सही।
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