कहाँ चल पड़ा इंसान?
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ईमान गवा बैठा इंसान
ढो रहा दुखों का पहाड़
छल-कपट
राग-द्वेष से परे,
सीधे सपाट समतल रास्ते छोड़
कहाँ चल पड़ा इंसान?
न्याय की,
श्रम की,
समानता की,
मानवता की,
जीवन मूल्यों की बुझा मशाल
रौंदता पैरो तले
सद्गुणों को
दुर्गुणों की
बाँध पोटली
इंसानियत को छोड़
कहाँ चल पड़ा इंसान?
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