भुखमरी

भुखमरी 
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जब रोटी के गीत गा कर माँ 
भूखे ही बच्चों को सुलाती है। 
 उनके फटे होंठ पिचका पेट देख माँ 
जिन्दी मर जाती है। 
 बोनी हो जाती वहाँ सारी परिभाषा 
जो मानवता कहे। 
 जहाँ खुद का सौदा करने को
 माँ खुद को रोक ना पाती है।
 निर्धनता बड़ी बीमारी है 
यहाँ मानवता रुठ जाती है।
 काँटों भरी है राहें इनकी
 यहाँ बाजी हारी जाती है। 
 भुखमरी लाचारी है कैसी
 इनकी कथा कही न जाती है।
 दर्द भरी कहानी है इनकी
 यहाँ आत्मा बेची जाती है।

 कैलाश मंडलोई 'कदंब' खरगोन मध्यप्रदेश

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