मूल्यों का पतन

मूल्यों का पतन

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जिसने 
पाला पोसा  
पढ़ाया लिखाया बड़ा किया
सपने देखे 
पथराई आँखों से, 
सेवा करेगा बेटा
सपोला बन उसी को डस लिया
छोड़ आया माँ-बाप को वृद्धाश्रम में। 
नकारा-निकम्मा 
घुस गया शिक्षालय में 
नकल करने, करवाने
आज मार दिया शिष्य ने 
अपने ही गुरु को सपोला बनकर 
और हम देख रहे तमाशबीन सपोले को। 
कुचल रहा आदर्श,  
अपने पैरो तले 
हो चुका मूल्यों का पतन
मुंह खोले अश्लीलता की ओढ़े केंचुली 
निगल रहा हमारे संस्कार, संस्कृति को 
नई पीढ़ी का अजगर
और हम देख रहे तमाशबीन सपोले को।
कैलाश मण्डलोई "कदंब"

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