माँ-बाप के सपने

आधुनिक युग का लाल

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माँ-बाप ने सपने देखे 

सोचा बहू आएगी 

गरमा गरम खाना 

अपने हाथों से खिलाएगी 

घर के कामों से आराम मिलेगा 

पोते- पोती होंगे

नन्ही किलकारीं से

घर का आँगन गूँजेगा  

खुशियों का संसार रचेगा

बहू आई, आते ही 

कर दी घर की साफ सफाई

पुराने पर्दे हटा दिए

रिश्तों की दीवार गिरा दी

बोली पति से

मकान है छोटा वेतन है कम

आपके माँ-बाबूजी के साथ

रहने में मेरा घुटता दम  

बेटा निकला पत्नी आज्ञाकारी

जिन्होंने लाड़ प्यार से 

पाला पोसा पढ़ाया लिखाया 

जिसकी खुशियों के खातिर 

खुद कष्ट सहे 

उसने इस एहसान के बदले

घर से उनको दिया निकाल

जीते जी कर दिया हलाल

आधुनिक युग का देखो लाल

कैसे-कैसे करता कमाल

वृद्धाश्रम में माँ-बाप छोड़ा 

फिर भी माँ कहती है मेरा लाल। 

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