बढ़ती बेरोजगारी टूटते सपने ----------------------- ‘जाने क्यों?’ चिथड़ों में मिली जिन्दगी चिथड़ों में सिमट कर रह गई। उसने भूखी, प्यासी अनेक रातें ऐसी गुजारी थी...। जब वह घर देर से आता था ‘वह सोचती’ रह जाती...। कभी-कभी वह आता ही नहीं और वह आता था तो अपने आप में ही उलझा-हुआ व्यस्त-सा...। वह नहीं समझ पाती थी उसे किस चीज की व्यस्तता रहती है...। बेटा है माँ की फिक्र पता नहीं रोटी भी ठीक से खाता है या नहीं विधवा माँ ने दुःख सहा, लोगों के ताने सुने मजदूरी की पेट काटकर उसे पढ़ाया वह थकी-थकी बूढ़ी हो चुकी सी सोचती नौकरी मिल जायेगी बहु आएगी पोते-पोती होगे उसे क्या पता नौकरी खोजने, रोजगार पाने में तमाम डिग्रियाँ और उपलब्धियाँ नौकरी की मुहताज है रिश्वत भ्रष्टाचार में सिफारिश है जिसकी नौकरी उसकी पक्की बेटे ने कई जगह किस्मत आजमाई न उसका हुनर काम आया न कोई डिग्रियाँ काम आई माँ की आशा टूट गई ‘जाने क्यों?’ चिथड़ों में मिली जिन्दगी चिथड़ों में सिमट कर रह गई। कैलाश मण्डलोई "कदंब"
घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे
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मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के
जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता
था...
इसमें फूल भी है, काँटे भी है, गम के संग खुशी भी है।चुन लो आपको जो अच्छा लगे। शब्दों की कमी इस संसार में नहीं है- पर उन्हें चुन-चुन कर मोती सा मूल्यवान बनाना बड़ी बात है। बस ज्ञान-विज्ञान, भाव-अभाव, नूतन-पुरातन, गीत-अगीत, राग-विराग के कुछ मोती चुन रहा हूँ। कुछ अतीत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञान मोतीयों से मन के धागे में पिरोकर कविता, कहानी, गीत व आलेखों से सजा गुलदस्ता आपको सादर भेंट।
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