लेखनी की ललकार (गीतिका)

 
लेखनी ललकारती है सच बताना चाहिये।
आँख पर से झूठ का पर्दा उठाना चाहिये।। 


जान कर अनजान बनना ना हमारा धर्म हो।
नोट के खातिर न कोई सच छुपाना चाहिये।।


भृष्ट जन भोले जनों को हर जगह भरमा रहे।
झूठ छल के चंगुलों से इनको छुड़ाना चाहिये।।


है सबल बलवान जो बल की जरूरत क्या उसे।
है थका कमजोर जो उसको उठाना चाहिए।।


वेश नेता का धरे गद्दार बैठे देश में।
सामने वो भृष्ट सारे चेहरे आना चाहिये।।


हो कलम के गर सिपाही झूठ से लड़ना सदा।
है छिपा जो सत्य बाहर आज आना चाहिये।।

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