श्रम सीकर से लथपथ चेहरे...
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सींची फसलें अपना खून
बना पसीना बना रक्त
अन्न कणों में उसका पसीना
स्वाद वही मिट्टी का,
क्या तुम पहचान सकोगे?
श्रम सीकर से लथपथ चेहरे
क्या इनको तुम पहचान सकोगे?
वे डरे सहमे कर्म करें
जब मेघ बजे दादुर चमके
हम उल्लास मनाते है
कीचड़ कालिख से सने हाथ
हम साफ पाक हो जाते है
भीषण अग्नि में तप-खप
अन्न कण उपजता
श्रम की महिमा उनकी
क्या तुम पहचान सकोगे? श्रम सीकर से लथपथ...
आओ इनको समझे जाने
इनकी पीढ़ा को पहचाने
इनको भी सम्मान चाहिए
इनके श्रम का दाम चाहिए
आओ इनको गले लगाए,
इनके घर आँगन भी सजाए
आपदा विपदा इनकी,
क्या तुम पहचान सकोगे? श्रम सीकर से लथपथ...
कैलाश मण्डलोई "कदंब"
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