मन की उलझन 

मन की उलझन 
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जिसे होना चाहिए पास मेरे 
वह न रहा पास मेरे
जिसे होना चाहिए 
उनके पास
वह न रहा उनके पास 
तेरे मेरे में उलझा मन
जीवन की भरी दुपहरी में 
तपता रहा मन सुबह शाम
आस लगाये
कल सुख आयेगा
सत रंगी संसार रचेगा
मन मस्त 
मयूर सा नाचेगा 
रात हुई, बीत गई
सुबह हुई, दिन बीता
उम्र गई, युग बीते
पर कल न आया 
हर पल जागा
कभी न सोया 
आज सुखों के
खो जाने की चिन्ता में
अपना सारा जीवन खोया।
कैलाश मण्डलोई "कदंब"

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