शब्दों का सौदागर

शब्दों का सौदागर 
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मैं कवि हूँ कविता कहता 
व्यर्थ नहीं मैं बोलता।
मैं शब्दों का सौदागर 
शब्दों को मैं तोलता।
प्रजातन्त्र का चौथा स्थंभ
बिन मेरे सब डोलता।
जब कभी भी मैं बोलता
राज नए मैं खोलता।

कैलाश मंडलोई "कदंब"

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