प्रेम की परिभाषा ...
--------------------
जो है तृषित
दुखित व्यथित
शापित अभागे
हे मानव तू
जन के मन की
अभिलाषा पड़ ले
प्रेम की परिभाषा घड़ ले।
क्यों करता
ढेर घने रे
संग न जाए
कुछ भी तेरे रे
अभी समय है
अभी सम्हल जा
सच्ची राह पकड़ ले
प्रेम की परिभाषा घड़ ले।
जात धर्म के झगड़ों में
उलझा फिरता मारा-मारा
उसने सब को
एक बनाया
फिर क्यों करता तू बटवारा
ईश्वर अल्लाह एक है
चाहे कितना भी झगड़ ले
प्रेम की परिभाषा घड़ ले।
आओ संग-संग झूमें नाचे
गीत प्रेम के गाए
आपस में हम सब
मिल-जुल कर
प्रेम का बाग लगाए
भेदभाव से दूर हो कर
एक दूजे का हाथ पकड़ ले
प्रेम की परिभाषा घड़ ले हम।
कैलाश मण्डलोई "कदंब"
0 टिप्पणियाँ