गरीब की भूख...

गरीब की भूख  (लघुकथा)
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आजकल पहाड़ी क्षेत्र भी सूखे की मार सह रहा है। यहाँ अधिकांश किसान ऐसे है कि उनके खेतों में इतना अनाज भी पैदा नही होता की वर्ष भर परिवार को खिला सके। नानटा और नानली भी भुखमरी की मार सह रहे है। एक दिन दोनों पति-पत्नी अपने चार बच्चों को लेकर पेट की खातिर काम की तलाश में गांव में आ गए। गांव में सोयाबीन की फसल कट रही थी। गांव के एक किसान ने अपने खलिहान में ही पशु बांधने के बाड़े में उनको रहने की जगह दे दी। दोनों सोयाबीन काटने की मजदूरी करने लगे। वे सुबह से खेत में चले जाते और शाम को आते। दिनभर बच्चे गांव की गलियों में इस गली से उस गली घुमा करते। स्कूल जाने का काम तो था नहीं। कभी-नानली बिना खाना बनाए ही खेत मे चली जाती और बच्चों कह जाती की गांव में से खाना मांगकर खा लेना। बच्चे भूखे खाना मांगने आने लगे। लोगों को बच्चों को देख दया आ जाती और वे उन्हें बचा खाना दे देते। नानली का पति रोज शराब पीता था साथ में नानली को भी शराब पीने की लत लग गई थी। अब तो दोनों शाम को काम पर से आते तो सीधे शराब की दुकान पर जाते जब नशें में धुत्त होकर दोनों घर आते और भूखे बच्चे खाना मांगते मगर वे दोनों नशें में बच्चों को गालियां देते। एक दिन भी ऐसा ही हुआ शाम को दोनों नशें में धुत्त होकर आए। घर खाना बना नही था जब बच्चों ने खाना मांगा तो मारने दौड़े तथा कहने लगे कि गांव में से रोटी मांगकर लाना तुमने भी खाना और हमें भी खिलाना। ऐसे नशे में बड़बड़ाते रहे और फिर नशें में धुत्त होकर बेहोश हो गये। ये जिस खलिहान में रहते है वह गांव से थोड़ा दूर था। अभी रात के 8 बज चुके है। बच्चे सोच रहे थे कि कुछ देर बाद इनका नशा उतर जाएगा और उन्हें खाना बनाकर दिया जाएगा। मगर रात के 12 बज जाने तक भी वे होश में नहीं आये तो इधर बच्चे भूख से बैचेन होने लगे। तब बच्चे हिम्मत कर रात के अंधेरे में गांव में जाकर खाना मांगने निकल पड़े। नन्हें-नन्हें अधनंगे भूखे बच्चे। डरे सहमे। खाली पेट। बिखरे बाल। जब गांव की गली में घुसे तो लोग नींद में सो रहे थे। और बच्चे हर घर के सामने जाते खाने की गुहार लगाते रो रहे थे। जब कोई आवाज नही आती वे अगले द्वार पर जाते आवाज लगाते "ओ जीजी खाना दे दे"। ऐसा करते -करते सुबह हो गई। जब लोग जगे तो उन्होंने भूखे बच्चों को कुछ खाना दे दिया। उन्होंने थोड़ा-थोड़ा वहीं खाया और थोड़ा खाना अपने माँ-बाप के लिए ले आये। इधर आकर देखा तो उनके माँ- बाप अभी भी बेसुध पड़े है। वे उनके पास आकर माँगकर लाया खाना रख देते है। उजाला हो चुका है जब किसान ने आकर बेसुध पड़े नानटा और नानली को जगाने की कौशिश की वो नही उठे। क्योंकि उनके प्राण भूखे पेट अधिक शराब पीने से रात को ही निकल गये थे। इधर पास बैठे बच्चे बासी रोटी के टुकड़े खा रहे है। कुछ रोटी के टुकड़े अपने माँ-बाप के लिए बचा कर  भी रखे है। इसी आस में की वे भी जगेंगे तब थोड़ा खा लेंगे। उनको पता नही की उनके मां- बाप अब इस दुनियाँ में नहीं रहे। और वे भूख के मारे बचे रोटी के टुकड़े भी खा गए। रात भर की जागरण के करण उन्हें भी नींद आ गई और वे भी उनके पास सो गये। शायद अब उनकी भूख बुझ गई?
 कैलाश मंडलोंई ‘कदंब’

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