प्रीत है प्यार है और आपस में मनुहार है।
कुहकी कोयल बागों में बसंती बहार है।।
अब न धीर धरे मन बावरा हुआ बैचेन।
साजन बिन सजनी के कटे न दिन रैन।।
राह तके नैन पलाश फूल से लाल हुए।
फूल गुलमोहर के ज्यों गाल गुलाल हुए ।।
फूल हंस रहे हैं खिल रही कली-कली।
नैनों से नैन मिले बात चली गली-गली।।
अली कली मुसकाई धीरे से शरमाई।
सिकुड़ी सी पंखुड़ियां हौले से फैलाई।।
मदमाते भौरें पर छाया ज्यों खुमार है।
साजन की बाहें बनी सजनी का हार है।।
कैलाश मंडलोई "कदंब"
खरगोन मध्यप्रदेश
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