चलना ही तो जीवन है ---------------------- हवा बदले पानी बदले आग बदलती रूप यहाँ कली फूल में फूल धूल में धूल से माटी माटी में जीवन पौधे का परिवर्तन ही जीवन है हर कण हर क्षण गतिमान रुके न कोई चीज यहाँ हर पल कलकल बहती नदियाँ कहती चल-चल सूरज चलता धरती चलती चलते चंदा तारे तू क्यों बैठा तेरा मेरा लेकर आज नहीं तो कल चलना है कब तक रैन बसेरा मत कर कल-कल बीत रहा पल-पल तू भी चल हर-पल चल चलना ही तो जीवन है।। कैलाश मण्डलोई "कदंब"
घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे
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मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के
जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता
था...
इसमें फूल भी है, काँटे भी है, गम के संग खुशी भी है।चुन लो आपको जो अच्छा लगे। शब्दों की कमी इस संसार में नहीं है- पर उन्हें चुन-चुन कर मोती सा मूल्यवान बनाना बड़ी बात है। बस ज्ञान-विज्ञान, भाव-अभाव, नूतन-पुरातन, गीत-अगीत, राग-विराग के कुछ मोती चुन रहा हूँ। कुछ अतीत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञान मोतीयों से मन के धागे में पिरोकर कविता, कहानी, गीत व आलेखों से सजा गुलदस्ता आपको सादर भेंट।
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