एक छंद


एक छंद और लिख दिया...

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भोर, धूप, सांझ, रात

शिखर, नदी, वृक्ष पात

लिख न सका राम नाम,

व्यर्थ ही जिया।। एक छंद और लिख दिया...

पुत्र, पत्नी, पिता, मात

स्नेही जन, सखा, भ्राता

अपना तो सपना है,

सत्य लुट गया। एक छंद और लिख दिया...

छंद, लय, विराम, ताल

अलंकार, रस, रसाल

राग लिप्त, विरति, सुख

न रंच भर लिया।। एक छंद और लिख दिया...

जड़-वैभव सत्य जान

चेतन को असत मान

जीवन सरि का जल

हर पल बहा दिया। एक छंद और लिख दिया... 


           कैलाश मंडलोई ‘कदंब’

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