निमाई का गजरूदादा ---------- बहुत समय पहले की बात है। गंगा नदी के किनारे चरनोई नाम का एक छोटा सा गाँव था। इसी गाँव में निमाई भी रहता था। तीन वर्ष का निमाई बहुत ही सुन्दर और चंचल स्वभाव का बालक था। उनके बचपन की लीलाओं को देखकर लोगों को कृष्ण की बाल-लीलाएं याद आ जाती थी। गांव के सारे लोग उनको बहुत प्यार करते थे, पर वह अपनी शरारतों से सबको परेशान भी कर डालता था। घर में माँ पिता के अलावा उसकी दादी माँ थी जो उसे सबसे अधिक प्यार दुलार करती थी। वह उसे अपने जमाने की कहानीयाँ सुनाया करती थी। उसे दादी की कही हर बात सच्ची लगती। उसके माता पिता जब भी खेतों में काम पर जाते थे तो वह भी उनके साथ जाने की जिद करता, रोता था तो दादी ही उसे सम्हालती थी। वह उसे हर बार झुठ-मुठ के उसके गजरूदादा का हवाला देकर समझा देती। बेटा चुप हो जा, गजरूदादा आयेंगे तो तुम्हें खेत में ले जायेंगे, खिलौने ला देंगे, खाने को ला देंगे लेकिन आज तक उसके गजरूदादा कभी भी नहीं आये। फिर भी उसे विश्वास था कि उसके गजरूदादा आयेंगे। वह इतने सारे प्रश्न करता की उत्तर देने वाला थक जाता पर उसके प्रश्न कभी खत्म ही नहीं होते थे। जब उसके किसी प्रश्न का उत्तर उसकी दादी के पास भी नहीं होता तो वे कहती की “बेटा मैं तुम्हारे गजरूदादा को पुछ कर बताऊंगी।“ अपनी बात मनवाने के लिए वह हठ भी अवश्य करता था। यदि उसकी इच्छा को न पूरा किया जाए तो वह आहत भी हो जाता था। कुछ समय तक रूठे भी रहता था लेकिन फिर से उसकी दादी उसे गजरूदादा का हवाला देकर समझा देती। और थोड़े समय के बाद वह फिर से पहले की तरह मस्त हो जाता था। तब उन्हें देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि कुछ समय पहले वह नाराज था। यही उसके भोलेपन की विशेषता थी। इसी कारण वह सभी का मन मोह लेने में सफल रहता था, और सब को अपना बना लेता था। कोई भी नया व्यक्ति हो वह बहुत ही जल्दी उसके साथ ऐसे घुल मिल जाता था, मानो उनका साथ बरसों पुराना है। कोई भी समय रहा हो, माता-पिता चाहे कितने भी गरीब क्यों न हो, अपने बच्चे को सजाये, सँवारें बिना नहीं रहते। यही हाल निमाई के पिता का भी था। वे जैसे तैसे अपना घर का खर्चा चलते थे। पर निमाई को सुन्दर वस्त्रों और गहनों से खूब सजाये रहते। गहनों में सोने की एक माला भी थी। जिसे निमाई हर समय अपने गले में पहने रहता था। उसकी माला को एक चोर की नजर लग गई। उसके मन में सोने की माला को लेकर लालच था। आये दिन वह इसी फिराक में रहता कि कब निमाई अकेला मिले और उसकी माला पर हाथ साफ करें। एक दिन मौका पा कर चोर निमाई के पास आया। उसने उसे उठाकर कही ओर ले जाने का सोचा। उसने सोचा की किसी सुनसान जगह ले जा कर उन्हें मार डाले और माला ले जाये। जैसे ही चोर उसके पास आया तो उसने देखा की उसकी बड़ी हुई दाढ़ी, बिखरे बाल, बड़ी-बड़ी मूंछें थी, और मटमैले कपड़े पहने था। चोर को देखकर वह डरा नहीं लेकिन वह तो अति प्रसन्न हुआ क्योंकि आज उसके गजरूदादा स्वयं उसे लेने आये है। उसने मन ही मन सोचा कि, अब तो उसकी हर इच्छा पूरी होगी। वह जहाँ चाहे वहाँ जा सकता है। अब तो वह अपने खेतों में भी जा सकता है। निमाई को उसकी दादी की बात याद आई की गजरूदादा बच्चों को बहुत प्यार करते है। वह बच्चों की हर इच्छा को पुरी करते है। वह जब भी आयेंगे तो तुम्हारी भी हर इच्छा को पुरी करेंगे और तुम्हें खेतों की सैर कराएंगे। और आज उसकी इच्छा पुरी हो गई। आज वह बहुत खुश है क्योंकि आज उसके गजरूदादा जो उसको मिल गए है। उसने निमाई को अपने कंधे पर बिठाया और जंगल की ओर चलने लगा। रास्ते में चलते- चलते चोर के कंधे पर बैठा- बैठा निमाई चोर को अपना गजरूदादा समझ उसके माथे पर हाथ फेरने लगा और उससे प्यार भरी बातें करने लगा। जब गांव से थोड़ी दूर ही निकले थे कि निमाई ने चोर से पुछा “तुम मेरे गजरूदादा हो न” “हूँ” सिर्फ इतना ही कहा चोर ने। अब वे दोनों हरे भरे खेतों के बीच बनी पगडंडी से जा रहे थे। चोर को यह भय लग रहा था की कोई मुझे देख न ले, मैं पकड़ा न जाऊँ। वह भय से डरा सहमा इधर उधर देखता दबे पाँव चला जा रहा था। सोचता जा रहा था की कब कहीं उसे सुनसान जगह मिले और इसका काम तमाम करूँ। और इधर निमाई हरे-भरे खेतों की हरियाली देख, रंग बिरंगी तितलियाँ को अपने आसपास उड़ती देख व पक्षियों की आवाज सुन खुशी से गदगद हो गया। वह चोर के कंधों पर बैठे-बैठे खुशी के मारे उछलने लगा। वह जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर अपने नन्हे हाथों से अपने गजरूदादा को बताने लगा “देखो वह तितली उड़ रही है, देखो-देखो कितने सारे पक्षी एक साथ आसमान में उड़ रहे है।“ आज पहली बार चोर ने बच्चे के अंदर इतने करीब से खुशी को मचलते देखा। उसका कमल सा सुन्दर पैर चोर की छाती से टकरा रहा था। उसके कोमल पैर का स्पर्श मानों चोर के पत्थर दिल पर लोहे के हथोड़े से चोट कर रहा हो। उसकी मीठी बातों को सुनकर चोर के हृदय में ममता उमड़ आई। चोर का पत्थर दिल धीरे- धीरे बर्फ की तरह पिघलने लगा। दिन ढलने का समय हो चला था। सभी अपने दिन काम खत्म कर अपने-अपने घर जाने की तैयारी कर रहे है। और इधर चोर के हृदय में एक नया सूर्य उदय हो रहा था। उसके मन का अँधेरा धीरे-धीरे छटने लगा। आज उसे पता चल गया कि बच्चों को भगवान क्यों कहा गया है क्योंकि बच्चों के मन में छल-कपट, ईर्ष्या-द्वेष नहीं होता। वे ईमानदार, सच्चे, सरल हृदय और भावुक होते हैं। इसीलिए उन्हें भगवान का रूप कहा जाता है। और उसने अपना इरादा बदल दिया। शाम होते-होते निमाई के माता-पिता भी अपने काम से लौटकर घर आ गए। बहुत देर हो गई और वह दिखाई न पड़ा तो घरवाले हैरान होकर उसे इधर-उधर ढूंढने लगे। कोई गंगा घाट की ओर दौड़ा, कोई बगिया की तरफ भागा। सभी लोग बड़े बेचैन और घबराये हुए थे। इसी बीच चोर उसे चुपचाप घर पर छोड़ गया। हर जगह ढूंढने के बाद भी जब निमाई कहीं नहीं मिला तो सभी लौटकर घर आये। और लोगों ने देखा की निमाई आँगन में खेल रहा है। दौड़कर सभी ने निमाई को गले से लगा लिया। सभी की आँखों से खुशी की अश्रु धार बह रही थी क्योंकि उनको उनका निमाई मिल गया। और निमाई मन ही मन खुश हो रहा, हँस रहा है अपनी दादी की ओर देखकर क्योंकि आज उसे उसके गजरूदादा जो मिल गए।
घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे
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मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के
जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता
था...
इसमें फूल भी है, काँटे भी है, गम के संग खुशी भी है।चुन लो आपको जो अच्छा लगे। शब्दों की कमी इस संसार में नहीं है- पर उन्हें चुन-चुन कर मोती सा मूल्यवान बनाना बड़ी बात है। बस ज्ञान-विज्ञान, भाव-अभाव, नूतन-पुरातन, गीत-अगीत, राग-विराग के कुछ मोती चुन रहा हूँ। कुछ अतीत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञान मोतीयों से मन के धागे में पिरोकर कविता, कहानी, गीत व आलेखों से सजा गुलदस्ता आपको सादर भेंट।
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