पृथ्वी संरक्षण 


पृथ्वी संरक्षण  
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मानव लांघ मत अपनी, सीमाओं को देख। 
दानव बनता जा रहा, मिटा धरा का लेख।।1।।  


खेत बना वन काटते, किया धरा का नाश।
पशु पक्षी आवास मिटा, खुद का किया विनाश।।2।।


खाद दवा खूब छिटका, बंजर हो गए खेत। 
माटी के गुण खतम हुए, बनती माटी रेत।।3।। 


धरती माता का बड़े, तापमान दिन रात। 
ताप मिटे उपाय करो, पौधों की हो बात।।4।। 


मिलकर कोई बात हो, छोड़ो व्यर्थ प्रलाप। 

संग धरा के न्याय हो, मिटे सकल संताप।।5।। 


  

 हमने जल गंदा किया

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