खोखला सा आदमी 

खोखला सा आदमी 
---------------
भार हीन
बिल्कुल हल्का
खोखला सा आदमी 
जब भुला अपने को  
धन वैभव की 
चमक धमक में 
हिस्सों में बटा
किश्तों में कटा
रिश्तों से हटा 
रिश्तों में आई दरार
नाजुक थे रिश्ते टूट गए
कहते थे अपने
वे साथी-संगी  छूट गए
हमारे अपने 
हमसे रूठ गए, 
धन, पद मान प्रतिष्ठा
पाकर सब कुछ 
दिल का चैन लूट गए
खोखले रिश्ते 
संबंधों में घुली 
मिठास खो गई?
चेहरों पर कपटी मुस्कान 
भीड़ में खामोशी का आलम
खोजता  गैरों में अपनों की महक
जैसे कागज के फूल।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ