प्रेम प्रीत की बातें छोड़ो ,
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प्रेम प्रीत की बातें छोड़ो ,
अब रण की भेरी बजने दो।
डोली श्रृंगारित फिर करना ,
सीमा पर सेना सजने दो।।
धरती आकाश में कहीं छुपे,
ढूंढो इनके आकाओं को।
गिनती करके आओ काटें ,
इनकी सारी शाखाओं को।।
हमलावर चाहे कोई हो ,
मुंहतोड़ जवाब चलो देने ।
दुश्मन यदि एक अगर मारे ,
बदले में दस शिर हैं लेने ।।
कभी करे न हरकत ऐसी,
सबक आज ऐसा सिखला दो।
अंजाम आज गद्दारी का ,
अब सारे जग को दिखला दो।।
कैलाश मंडलोई कदंब
खरगोन मध्यप्रदेश
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