तेरे रूप अनेक है नारी...
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तुम्हारे रूप अनेक है नारी।
महिमा तुम्हारी वेद उचारी।।
माँ ममता की मूरत में तू।
त्याग प्रेम की सीरत में तू।।
बहन बेटी अनोखा रिश्ता।
पिता भाई समझे फरिश्ता।।
कल्पना सी उड़ान है नारी।
सपनों का सृंगार है नारी।।
नर की सौरभ शान है नारी।
वत्सलता की खान है नारी।।
त्याग सी मूर्तिमान है नारी।
समर्पण की पहचान है नारी।।
नारी सम जग में और नही।
नारी बिन कोई ठौर नही।।
जुल्म नारी पर और नही।
कोमल है कमजोर नहीं।।
मत समझो अबला बेचारी।
आज पुरूष पर भारी नारी।।
कैलाश मंडलोई 'कदंब'
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