इसीलिए नाराज है बेटी... .................................. परम क्षण थे वे, जब जन्म हुआ बेटी का धरा मुस्कराने लगी, गगन गीत गाने लगा सुन किलकारी बेटी की आँगन का बरगद भी लहलहाने लगा। मगर वे नादान थे बेटी की महिमा से अंजान थे बेटा कुल का दीपक, बेटा तारणहार, बेटी पराया धन, इसी सोच से परेशान थे। झूठी शान, झूठी परंपराओं के बीच जन्म हुआ बेटी का पल में खुशियाँ खो गई मातम सा पसरा घर में बेटी को नफरत ने निहारा साँस ने बहु को धूत कारा बहु ने खुद को धिक्कारा आज नारी ही नारी की दुश्मन बनी मानवता इतनी क्रूर हुई माँ की ममता भी बेटी से जब दूर हुई। पुरुषत्व जाग उठा पुरुषों का कैसे अस्तित्व मिटाए उसका कैसे मारा जाए उसको कोई कहे गला दबा दो कोई कहे पानी में डूबो दो तय हुआ घर के आँगन में बूढ़े बरगद के नीचे जिंदा गाड़ो इसको यहीं दबा दो। आँगन में माँ लाई उसको पिता ने गड्ढ़ा खोद दिया, जब गड्ढ़े में उसे सुलाया बूढ़ा बरगद भी रो दिया। किलकारी सी गुँजी गगन में करुण वेदना जाग उठी रोने लगे पशु पक्षी अश्रु धार बहने लगी, देख मानव का यह कर्म आज धरा भी रोने लगी। जब नन्ही आँखों ने इस बरगद को देखा इस जग को देखा बरगद ने भी जी भर उस नन्ही आँखों में देखा जाग उठी माँ की ममता उस बरगद में जो सोई थी वर्षों से सुने दिल के किसी कोने में धिक्कारा उसने मानव की मानवता को देख मानव की क्रूरता उस दिन से वह भी सूख गया और बोल उठा वह बरगद का सूखा ठूंठ इसीलिए नाराज हूँ मैं इसीलिए नाराज है बेटी। कैलाश मंडलोई 'कदंब'
घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे
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मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के
जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता
था...
इसमें फूल भी है, काँटे भी है, गम के संग खुशी भी है।चुन लो आपको जो अच्छा लगे। शब्दों की कमी इस संसार में नहीं है- पर उन्हें चुन-चुन कर मोती सा मूल्यवान बनाना बड़ी बात है। बस ज्ञान-विज्ञान, भाव-अभाव, नूतन-पुरातन, गीत-अगीत, राग-विराग के कुछ मोती चुन रहा हूँ। कुछ अतीत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञान मोतीयों से मन के धागे में पिरोकर कविता, कहानी, गीत व आलेखों से सजा गुलदस्ता आपको सादर भेंट।
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