झूठ, फरेब की पौध... ------------------------- भीड़ में ईमानदारी खो गई कहीं हर जगह मानव व्यवहार में उग रही गाजर घास की तरह स्वार्थ, लालच, छल-कपट झूठ, फरेब की पौध। झूठ बोलने को लपलपाती जिव्हाएँ न जानें कितनी लपलपा रही है जेलों में, न्यायालय में राज सत्ता के गलियारे में, गीता, कुरान पर हाथ रख कर। उजले तन कालिख से पुते मन खड़े ईमान का ओढ़े नकाब नोचने को, खरोचने को बंगलों में चमचमाती कारों में। मुंह पर लगा खून मस्तक की लकीरे, साफ गवाही दे रही ये ऐसे गिद्ध, बगुले कमल के फूल है जो ईमान बेचकर बेईमानी, झूठ, फरेब का कीचड़ खा कर पलते है। कैलाश मण्डलोई "कदंब"
घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे
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मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के
जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता
था...
इसमें फूल भी है, काँटे भी है, गम के संग खुशी भी है।चुन लो आपको जो अच्छा लगे। शब्दों की कमी इस संसार में नहीं है- पर उन्हें चुन-चुन कर मोती सा मूल्यवान बनाना बड़ी बात है। बस ज्ञान-विज्ञान, भाव-अभाव, नूतन-पुरातन, गीत-अगीत, राग-विराग के कुछ मोती चुन रहा हूँ। कुछ अतीत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञान मोतीयों से मन के धागे में पिरोकर कविता, कहानी, गीत व आलेखों से सजा गुलदस्ता आपको सादर भेंट।
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