प्रेम


प्रेम की ना परिभाषा है
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प्रेम को ऐसे तोल नहीं
प्रेम का कोई मोल नहीं।
प्रेम बिके नाहि बजार
प्रेम में बिकता संसार।

प्रेम से बस बोल दो
प्रेम रसना घोल दो।
प्रेम हृदय में जब घुले
प्रेम से सब कुछ मिले।

प्रेम मिटाए फितरत को
प्रेम जगाये हसरत को।
प्रेम से नफरत को काटे
प्रेम ही हम सब को बांटे।

प्रेम का नाहि रूप रंग
प्रेम उपजे हिय उमंग।
प्रेम की सब बात करें
प्रेम ही अब हिय धरें।

प्रेम की ना अभिलाषा है
प्रेम की ना परिभाषा है।
प्रेम जन जन की भाषा है
प्रेम तन मन हर्षाता है।

     कैलाश मंडलोई 'कदंब

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