भूख राग...




 
भूख राग...
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धधकती  ज्वाला  
पेट में लगी आग कैसे बुझाएं? 
सिकुड़ती आँतें 
पिचके गाल, बिखरे बाल 
निहारती फटी आँखें 
ऊंची-ऊंची इमारतें 
उनके आस पास 
फेंका गया जूठन  
ताकि बुझा सके 
पेट में लगी आग। 
इनके श्रम पर खड़ी इमारतें 
जिनमें रहते सभ्य परजीवी   
जो पले बड़े 
इन्हें चुस-चुस कर  
माँस खाकर इनका 
इन्हें घिन आती  
देखकर फटी आँखें 
चिथड़ों में लिपटा तन  
इन्हें धधकती 
भूख की ज्वाला 
कहाँ दिखाई देती है? 
और तुम गाते हो 
गाते ही जाते 
अपना वही राग पुराना।
भूख मिटाने, तन ढकने,  
सिर छिपाने का।
कितने दिन बीते
कितने युग बीते
कितने राजा आए गए
कितनी सत्ता बनी मिटी
कितनी सरकारें आई गई
कितने वादे किए गये 
कितनी योजनाएं बनी, 
तुम्हारा राग बदलने की
पर न, तुम बदले
न बदला, वह राग पुराना
न भूख मिटी
न तन ढका
न सिर छिपा 
आज भी खड़े हो 
खुले आसमान में 
और तुम गाते हो, गाते ही जाते 
अपना वही राग पुराना 
भूख मिटाने, तन ढकने, सिर छिपाने का।
कैलाश मण्डलोई "कदंब"

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