गंदा जल


हमने जल गंदा किया, किया दूषित समीर। 
दोषी इसके हम सभी, मृत सा हुआ जमीर।।



उपजत रोग नए-नए, दूषित भोजन खाय।
पर मानव माने नहीं, कौन इसे समझाय।।



जीवन का आधार है, पानी की हर बूँद।
सहजो हर इक बूँद को, आँख न लेना मूँद।।



कर पानी का मोल तू , सस्ते में मत तोल।
व्यर्थ  न इसको यूँ बहा, पानी है अनमोल ।।



जहाँ-जहाँ पानी मिले, फसल वहाँ लहराय।
बिन पानी फसलें खड़ी, देखो सूखी जाय।।



जल से ही जीवन बना, जल बिन जीवन नाय।
बिन जल के जब होय धरा, जीव सकल मिट जाय।।
कैलाश मंडलोई 'कदंब'
खरगोन मध्यप्रदेश


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