कवि कामना दुर्दिन बीते जाय
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झूठ और फरेब का देखो कैसे लगा है सबको रोग।
कैसे दिन के उजाले से अब तो यहाँ डरते हैं लोग।।
अजब आया है जमाना रहा न किसी का ठिकाना।
गुरु यहां तो भूखे मरे और अब चेले लगाये भोग।।
सज्जन भागे यहाँ वहाँ और दुर्जन की जय होय।
ज्ञानी ध्यानी दिखे नहीं ढोंगी भोगी मिले कुयोग।।
भूख गरीबी अब मिटे और कटे सकल संताप।
भृष्ट जन सद मारग हो प्रभु बना दे ऐसा संयोग।।
बस इतनी अब कवि कामना दुर्दिन बीते जाय।
छल कपट हो खात्मा सफल कारज बने सुयोग।।
कैलाश मंडलोई कदंब
खरगोन मध्यप्रदेश
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