आतंक की बीते निशा अब
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धधकती प्रतिशोध ज्वाला, लहू ले दुश्मन का बुझे।
सबक ऐसा सिखाओ अब, गलत करने की न सूझे।।
सहन कर ली बहुत हमने, सहन अब कर न पाएंगे।
छुपे आतंकी हो पाताल, मौत से अब न बच पाएंगे।।
गर अब के भी छोड़ा इनको, ये ओकात दिखाएंगे।
सिर्फ दुबकेंगे ये चार दिन, फिर जख्मी कर जाएंगे।।
फन कुचलना भी जरूरी है, आस्तीनों के सांपों का।
अब कर दो हिसाब इनका, इनके सारे पापों का।।
आतंक की बीते निशा अब, अमन की ही प्रभात।
उखाड़ो जड़ से अब इनको, न मासूमों पर हो घात।।
कैलाश मंडलोई कदंब
खरगोन मध्यप्रदेश
धधकती प्रतिशोध ज्वाला, लहू ले दुश्मन का बुझे।
सबक ऐसा सिखाओ अब, गलत करने की न सूझे।।
सहन कर ली बहुत हमने, सहन अब कर न पाएंगे।
छुपे आतंकी हो पाताल, मौत से अब न बच पाएंगे।।
गर अब के भी छोड़ा इनको, ये ओकात दिखाएंगे।
सिर्फ दुबकेंगे ये चार दिन, फिर जख्मी कर जाएंगे।।
फन कुचलना भी जरूरी है, आस्तीनों के सांपों का।
अब कर दो हिसाब इनका, इनके सारे पापों का।।
आतंक की बीते निशा अब, अमन की ही प्रभात।
उखाड़ो जड़ से अब इनको, न मासूमों पर हो घात।।
कैलाश मंडलोई कदंब
खरगोन मध्यप्रदेश
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