समय प्रबंधन (उद्देश्यपूर्ण जीवन के संदर्भ में)
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एक सफल व्यक्ति के जीवन में समय प्रबंधन का विशेष महत्व है। दैनिक जीवन में समय प्रबंधन का महत्वपूर्ण तथ्य है-कार्य करने की गति। सच तो यह है कि कार्य करने की गति का सीधा और बहुत गहरा संबंध समय के प्रबंधन से ही नहीं बल्कि समय के होने तथा समय के बचाने से भी है। दो व्यक्ति एक साथ किसी एक निश्चित मंजिल के लिए जा रहे है। निश्चित रुप से वह व्यक्ति मंजिल पर पहले पहुँचेगा जिसकी रफ्तार तेज है। यदि वह मंजिल पर दो घंटे पहले भी पहुँच गया तो उसके पास यह दो घंटे का समय शेष बच जाता है। और यदि वह व्यक्ति सचमुच समझदार और महत्वाकांक्षी हुआ तो अपने इन दो घंटे का इस्तेमाल किसी अन्य काम के लिए करेगा। यानि कि जब तक उसके साथ चलने वाला व्यक्ति मंजिल तक पहुंचेगा, तब तक वह दो घंटे का काम करके उसकी तुलना में आगे निकल चुका होगा। अगर यही रोज होता रहे तो आप समझ सकते है कि तेज गति से चलने वाला यह व्यक्ति अपने साथी से कितना आगे निकल जायेगा। यही हमारे जीवन में भी होता है।
विशेष बात हम किसी नए काम के बारे में तभी सोच पाते है, जबकि हमें लगे कि उस काम को करने के लिए हमारे पास समय है। स्वाभाविक है कि जब समय ही नहीं होगा, तो फिर किसी नए काम के बारे में सोचने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। और यह समय तभी होगा, जबकि हमारे काम करने की गति तेज होगी। जब गति तेज होगी तब हमारे पास समय बचेगा और जब समय बचेगा तभी हम कुछ विशेष और नया करके अपने साथ और आसपास के लोगों से आगे निकलकर हम अपनी पहचान बना सकेंगे। कुछ बाते जिन्हें आप अपने जीवन में अपनाकर समय के उचित प्रबंधन से एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जी कर सरलता से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है।
1-सबेरे जल्दी उठिए--
जो सोता रहता है, उसका भाग्य भी सो जाता है। वे लोग कभी दीर्घायु नहीं होते और न ही जीवन में सफल होते है, जो देर तक सोते रहते है। देर से उठने वाले का प्रत्येक काम देर से शुरू होता है और देर से समाप्त होता है। यह जीवन में की जाने वाली और प्रत्येक दिन दोहराई जाने वाली सबसे बड़ी भूल है।
शारीरिक और मानसिक सुधार की यह पहली सीढ़ी है कि हम आलस्य को छोड़े। शरीर को आवश्यकता से अधिक नींद और आराम देना ही आलस्य है। टालमटोल और आवश्यक काम को लटकाते जाना भी आलस्य ही है। इसके नाश के लिए पहला जो कदम आपको उठाना होगा, वह यह कि प्रातः पाँच बजे बिस्तर से उठ खड़े होना चाहिए। फिर आप देखे कि आप पर इसका कितना अच्छा प्रभाव पड़ता है। आप अनुभव करेंगे कि आज सारा दिन शरीर में अधिक ताजगी और स्फूर्ति रही है। काम में खुब मन लगा है और सारे काम जल्दी-जल्दी होते गए है।
नींद खुल जाने पर भी बिस्तर में पड़े रहना चरित्र के लिए और मानसिक पवित्रता के लिए हानिकारक है। एक विद्वान का कथन है कि मैंने ऐसे लोगों को कभी भी उन्नति करते नहीं देखा, जो दिन निकल आने पर भी सोए रहते है।
2-समय की पाबंदी-
गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है –“का बरषा जब कृषि सुखाने।“ खेती सुखकर नष्ट हो गई। अब यदि बादल बरसा तो किस काम का।
आपका प्रयत्न, आपका परिश्रम तभी सफल होगा यदि उसे समय पर करेंगे। आप देर की, आप चूके कि बात बिगड़ी। हर काम का समय होता है, हर बात का समय होता है। जो समय को नष्ट करते है समय उसको नष्ट कर देता है और जो समय को बचाते है—उसका पूरा-पूरा उपयोग करते है—समय उन्हें बचा देता है।
आप एक बार अपनी आदत बना लीजिए कि मैं कभी किसी काम को अगले दिन के लिए टालने का यत्न नहीं करूँगा, आज का काम आज ही समाप्त कर दूंगा। फिर देखिए आपके पास कितना समय बच जाता है और सारे काम कितने अच्छे ढंग से पूरे होते है। समय पर काम करने वाला व्यक्ति समय गंवाकर काम करने वाले व्यक्ति की अपेक्षा दुगना चौगुना काम कर लेता है।
हममें कुछ ऐसी ढिलाई आ गई है, आदतें कुछ ऐसा बिगड़ गई है कि हम नियम पालन को एक झंझट समझते है। कुछ छात्र कभी समय पर स्कूल नहीं पहुँचते, समय पर पुस्तकालय की पुस्तकें नहीं लौटाते। बस या गाड़ी पर कही जाना हो तो समय पर नहीं पहुँचते। जब देखें, तभी लेट। ऐसे लोगों को जब देखो, भागते नजर आएंगे। पर शायद वे नहीं जानते कि दौड़ना बेकार है। मुख्य बात तो समय पर निकलना है।
जो वादा करो, मन में जो निश्चय करो, उसे अवश्य पूरा करो। बहुत से लोग, यदि उन्हें किसी काम में देर हो जाती है तो कहने लगते है कि इस बार उन्हें देर हो गई, किन्तु मैं भविष्य में देर नहीं करूँगा। यह पहला अवसर था, इस बार तो क्षमा कीजिए। ऐसे लोग भूल करने और क्षमा माँगने के अभ्यस्त हो जाते है। वे हर बार भूल करेंगे और क्षमा मांगेंगे। इस प्रकार झूठे वायदों से खुद को और दूसरों को कितना कष्ट उठाना पड़ता है, यह अच्छी बात नहीं है।
यदि जीवन में कुछ बनना चाहते हो, कुछ कर दिखाना चाहते हो तो जिस काम के लिए जो समय निश्चित करो, उसी समय उसे कर डालो। यदि 5 बजे उठने का निश्चय कर सोते हो, तो ठीक 5 बजे बिस्तर छोड़ दो। यदि किसी से 5 बजे मिलने का प्रोग्राम है तो ठीक 5 बजे पहुँच जाओ। न पहले न पीछे।
छात्र जीवन में इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कि सब काम ठीक समय पर किए जाएं। अर्थात पढ़ने-लिखने का, खाने-पीनें का, खेलने-कूदने का, घूमने-फिरने का और सोने–जागने का समय निश्चित कर लेना चाहिए।
यह सत्य बात है कि जो छात्र अपने कार्य निश्चित समय पर करते है, वे कभी फैल नहीं होते।
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हमारे सामने दो काम होते है। उनमें से एक काम करना आवश्यक होता है और दूसरे को करने को जी चाहता है। अब हम सोचते है कि पहले कौन-सा करें? ऐसे अवसर पर बीना किसी सोच-विचार के हमें आवश्यक कार्य को करने के पक्ष में फैसला करना चाहिए।
3-योजना बनाकर काम कीजिए-
आपको कल जो काम करना है, आज शाम को उसकी रूप रेखा—किस समय कौन सा काम करना है? कैसे करना है? निश्चित कर लें। यह रूपरेखा यदि कागज पर लिख ली जाए तो और भी अच्छा होगा। फिर दूसरे दिन उठते ही एक बार फिर उस रूपरेखा पर विचार कर लें। अगर उसमें कुछ फेर-बदल करने की आवश्यकता हो तो कर लें और फिर उस पर अमल करना शुरू कर दें।
यह अनुभव की बात है कि यदि पहले से काम की रुप रेखा और क्रम निश्चित कर लिया जाए तो अपेक्षाकृत बहुत अधिक काम हो जाता है। बिना सोचे समझें काम शुरू कर देने से—कौन सा काम पहले शुरू करें, कौन सा काम कैसे करें—काम कभी कही तरीके से और निश्चित समय के भीतर नहीं होता। इस प्रकार समय और शक्ति दोनों की हानि तो होती ही है, समय पर काम न होने से जो हानि होती है, वह अलग रही। और हर समय काम का ढेर पड़ा रहने के कारण मन भी अशांत रहता है।
कहने का तात्पर्य यह है की कायदे और क्रम से काम किया जाए तो कम शक्ति और कम समय खर्च करने से भी काम बढ़िया होता है। हम जब भी बीना योजना बनाए काम करते है तो उसमें अधिक समय लगता है और मेहनत भी अधिक करनी पड़ती है। और जो काम किया जाता है, वह भी अच्छी तरह नहीं हो पाता है।
काम को ढंग से करें तो वह कभी काबू से बाहर नहीं होता, और सही ढंग से न करें तो काम, काम करने वाले के सिर सवार रहता है और सोते जागते परेशान रखता है।
प्रायः छुट्टी के दिन लोगों को यह कहते सुने जाता है कि आज का दिन तो बातों में ही निकल गया। कई काम सोचे थे पर हुआ एक भी नहीं। प्रातः हम घण्टा-डेढ़ घण्टा देर से उठते है और फिर हर एक काम के लिए कहते है कि क्या जल्दी है आज तो छुट्टी है। इस प्रकार न कुछ पढ़-लिख पाते है और न कोई घर का काम कर पाते है।
अनुभव यह बताता है कि जो विद्यार्थी, कर्मचारी या व्यापारी अपने काम को नियमानुसार करता है, वह अवश्य सफल होता है। मेरे एक मित्र है, उनकी मेज पर अंक छोटी डायरी रखी रहता है। वे अगले दिन का काम शाम को ही उस पर लिख लेते है। दूसरे दिन शाम को वे उस पर नजर डालते है और देखते है कि कोई काम बाकी तो नहीं रह गया है। यदि कोई काम बाकी होता है तो वे सोचते है कि यह आज ही क्यों नहीं हुआ? अगर उस दिन उन्होंने थोड़ा-सा भी समय व्यर्थ गंवाया हो तो उसके लिए पश्चाताप करते है। और भविष्य में कभी समय व्यर्थ न गंवाने और उस दिन का काम उसी दिन समाप्त करने का प्रयत्न करते है। पर ऐसा कम ही होता है। वे प्रायः अपना काम शाम तक समाप्त कर लेते है। और जब शाम को डायरी से मिलान करते है, तो उन्हें अत्यन्त आत्मिक प्रसन्नता प्राप्त होती है।
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि वे अधिक काम एक दिन के लिए लिख लेते है और वह शाम तक पूरा नहीं हो पाता। या कभी अचानक कोई नया आवश्यक काम आ पड़ता है, इसलिए कुछ काम बच जाता है। कभी कोई मित्र या मेहमान आ जाते है और काम में रूकावट पड़ती है। पर तो भी, मेरे मित्र काम न पूरा होने के सब कारणों पर शाम को विचार करते है।
सभी उन्नति चाहने वाले व्यक्तियों और विशेष रूप से छात्रों को चाहिए कि वे अपने दिन भर के कामों पर शाम को विचार करें और जब देखे कि सब काम ठीक से हो गए है तो दूसरे दिन के कामों का क्रम निश्चित कर लें। काम से मेरा तात्पर्य सभी प्रकार के कामों से है, जैसे गणित के प्रश्न निकालना, अनुवाद करना अथवा दफ्तर या दुकान का काम करना।
योजना बनाकर, ढंग से और क्रम से निश्चित कर लेने पर काम जल्दी होता है, ठीक होता है, समय पर होता है और काम करने में थकावट नहीं होती है। अपनी सफलता से आनन्द और संतोष होता है।
यह ठीक है कि दिन भर में जितना काम करने का निश्चय किया था, यदि उतना नहीं कर पाए तो मन में कुछ निराशा होगी, खेद होगा। परन्तु यह निराशा और खेद तो दूसरे दिन अधिक काम करने की प्रेरणा देंगे और आप देखेंगे कि दूसरे दिन आपने अधिक से अधिक काम को समेट लिया है। बस, दिनों दिन आप सफलता के समीप पहुँच जाएंगे और आपकी काम करने की शक्ति, कुशलता और गति बढ़ती जाएगी।
4-लगातार परिश्रम करते रहिए-
यदि आपके मन में किसी भी कारण से कभी यह विचार घर कर ले कि मैं बड़ा भाग्यवान और बुद्धिमान हूँ तो आपको चाहिए की जीतनी जल्दी हो सके इस भ्रांत विचार को मन से निकाल दे। याद रखिए, संसार की कोई भी वस्तु, किसी भी व्यक्ति को, कभी भी बिना परिश्रम के नहीं मिलती। मेहनत और पुरुषार्थ ही से मनुष्य उन्नति करता है और कर सकता है। बिना परिश्रम के एक फूटी कौड़ी भी मिलना संभव नहीं।
इसलिए आपका यह कर्तव्य है कि श्रम से, पुरुषार्थ से कभी जी न चुराएं, कभी मुंह न मोड़े। काम छोटा हो या बड़ा हो, उसे सदा मन लगाकर करिए। एक विद्वान का कहना है कि जो आदमी छोटे-छोटे कामों को मन लगाकर परिश्रमपूर्वक करता है, उसमें बड़े-बड़े कामों को भी सफलतापूर्वक करने की सामर्थ्य पैदा हो जाती है। परिश्रम करने आदत डालना ही अपने आपमें एक बड़ी सफलता है। क्योंकि यही सफलता की कुंजी है। श्रम की शक्ति असीम है। उसकी कोई माप-जोख नहीं हो सकती। संसार में जितने भी महत्वपूर्ण कार्य हुए है, उनका इतिहास कुछ परिश्रमी लोगों का इतिहास है। रेल, तार, हवाई जहाज, बिजली, रेडियो आदि जितने भी आविष्कार हुए है, वे सब निरन्तर परिश्रम का ही फल है।
आज जब हम किसी पुरानी इमारत को देखते है, किसी पुरानी बड़ी पुस्तक को देखते है, तो मन में प्रश्न उठता है कि वे लोग इतना कुछ कैसे बना सके, कैसे लिख सके?
इन प्रश्नों का एक ही उत्तर है और वह है लगातार परिश्रम। परिश्रमी के लिए यह सब कुछ अधिक नहीं है। लगातार थोड़ा-थोड़ा काम करने से भी बहुत हो जाता है।
यदि प्रतिदिन किसी पुस्तक के 10 पृष्ठ पढ़ें तो वर्ष भर में 3650 पृष्ठ हो जाएंगे और मान लो कि आपने अपनी 15 वर्ष की अवस्था में ही प्रतिदिन इतना पढ़ना प्रारम्भ कर दिया तो 40 वर्ष की अवस्था तक ही जब कि आप जवान होंगे, आप 54600 पृष्ठ पढ़ चुके होंगे। यदि कोई व्यक्ति निरन्तर प्रतिदिन कुल तीन घण्टे चलता रहे तो 7 वर्षों में वह पृथ्वी के पूरे चक्कर जितना फासला तय कर लेगा।
मनुष्य मात्र के लिए और विशेष कर छात्रों के लिए आलस्य से बढ़कर बुरी बात कोई नहीं है। आलस्य हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। जो मनुष्य अपने काम से जी चुराता है, वह दूसरे बेकार के काम किया करता है, जिससे दूसरों को और स्वयं उसको अपनी इस मूर्खता का पता न लगे और लोग समझते रहे कि यह बड़ा मेहनती है, जब देखो, काम में लगा रहता है।
अपना आवश्यक काम न करना और दूसरे बेकार के कामों में लगे रहने का नाम मेहनत नहीं है। यही आलस्य है। हमारे जिम्मे जो काम सौंपा गया है, हमारा जो कर्तव्य है, उसको मन लगाकर पूरा करना ही मेहनत है।
मैं एक बात बताता हूँ। उसे सुनकर चौंकिये मत। यह एक सच्चाई है कि जो मनुष्य परिश्रमी होता है, जिसके पास अधिक काम होता है, उसे काम करने के लिए समय भी मिल पाता है। क्योंकि उसका समय काम के अनुसार कई भागों में बंटा होता है, और प्रत्येक भाग के काम की समाप्ति पर उसे कुछ न कुछ समय मिल ही जाता है। परन्तु जो आलसी होता है, वह हर घड़ी काम के लिए समय न मिलने की शिकायत किया करता है।
जो परिश्रम से थककर चुर नहीं हो जाता, उसे सफलता नहीं मिलती। जो भाग्य के भरोसे बैठा रहता है, उसका भाग्य भी बैठ जाता है। जो आगे बढ़ता है, उसका भाग्य भी आगे बढ़ता है। इसलिए, आगे बढ़ो, आगे बढ़ो।
हम प्रायः एक भूल किया करते है। इस भूल से सदा बचते रहना चाहिए। यह हमें बड़ा धोखा देती है। हम सोचा करते है—यह काम तो मैं एक बार शुरु करने पर दो दीनों में पूरा कर डालूंगा।
लोग प्रायः और छात्र विशेष रुप से दैनिक कार्यों और पढ़ने-लिखने का क्रम और नियम तो बहुत शीघ्र बना लेते है, और उन्हें लिख भी डालते है परन्तु उनका यह लिखा बहुत बार लिखा ही रह जाता है। उसे कार्य का रुप मिल ही नहीं पाता है।
किसी कार्य को लगातार करते रहने के लिए यह आवश्यक है कि हन उसका चुनाव सोच समझकर करें। पर एक बार आरम्भ कर दे तो बीच में कभी न छोड़ें।
5- दृढ़ता-
दृढ़ता यानी मजबूती। पर मजबूती तो कई प्रकार की होती है। लेकिन जिस दृढ़ता का जिक्र हम करने वाले है, उसका अभिप्राय है—इरादे की मजबूती, विचार की दृढ़ता। एक बार भली प्रकार सोच-समझकर जिस काम का आरम्भ कर दिया, अब उसे पूरा कर के ही छोड़ेंगे, चाहे कितनी ही कठिनाइयों का सामना करना पड़े, चाहे कितनी ही रूकावटें आएं, उसे अधूरा नहीं छोड़ेंगे, यही निश्चय की दृढ़ता है। दृढ़ता का जीवन में बहुत महत्व है। जिसमें दृढ़ता नहीं, वह को भी बड़ा काम नहीं कर सकता।
उस व्यक्ति ने ऐसा किया, वैसा किया, हम भी वैसा कर लेंगे। इस प्रकार लोगों की देखा देखी कोई काम शुरु करने वाले लोगों की कमी नहीं है। पर जब काम करते उन्हें काई कठिनाई आ जाती तो उसे अधूरा ही छोड़कर बैठ जाते है। उनमें दृढ़ता की कीं होती है।
एक छात्र ने एक विद्वान के घर लिखा देखा कि “व्यर्थ की बातचीत में समय नष्ट नहीं करना चाहिए।”
दूसरे ही दिन उसने भी यह वाक्य अपने कमरे में लिख कर लगा लिया। तीसरे दिन अपने अध्यापक से प्रेमचंद की कृतियों की प्रशंसा सुनी। अब उसने निश्चय किया कि मैं भी प्रेमचंद जी जैसा लेखक बनूंगा। इसके लिए पहले प्रेमचंद जी की कृतियों को पढ़ना आवश्यक था। घर आकर उसने पिछले दिन का लिखा वाक्य उखाड़ फेंका और पुस्तकालय से ला-लाकर प्रेमचंद जी की पुस्तकें पढ़ने लगा। कुछ दिन बाद उसने एक समाचार पत्र में ‘बात-चीत करने की कला’ इस शीर्षक का लेख पढ़ा। उसमें एक बहुत बड़े विद्वान के कथन का उल्लेख करते हुए लिखा था कि बात-चीत में उनसे कोई नहीं जीत सकता था। अब इस छात्र ने निश्चय किया कि मैं भी बात-चीत से दूसरों को प्रभावित करने की कला सीखूंगा। और उसने प्रेमचंद जी की पुस्तक पढ़ना बंद करके बात-चीत करने की कला सीखनी शुरु कर दी। अब वह वक्त- बेवक्त सहपाठियों के कमरों में जाने लगा ताकि उनसे बात-चीत करके वह बात-चीत की कला का अभ्यास कर सके।
वह व्यक्ति संसार में कभी कोई बड़ा काम नहीं कर सकता, जो एक काम का इरादा करता है, पर किसी साथी या सम्बन्धी ने उस काम की आलोचना की तो उसे छोड़ बैठता है। ऐसा लोगों के लिए एक अंग्रेज विद्वान ने कहा है कि ‘जिसकी अपनी कोई राय नहीं, बल्कि दूसरे की राय और रुचि पर निर्भर रहता है, वह गुलाम है।
आपने देखा होगा कि बड़ी-बड़ी इमारतों पर वायु की दिशा सुचित करने के लिए एक मुर्गा बना रहता है। जिस ओर को वायु बहती है, उसका मुंह भी उस ओर घूम जाता है। जो लोग दृढ़ निश्चय वाले नहीं होते, वे भी उस मुर्गे की भाँति ही अस्थिर होते है। उनके विचार कभी स्थिर नहीं रहते। ऐसा व्यक्ति कभी भी उन्नति नहीं करता। उस मुर्गे की भाँति वह भी एक ही कील से गड़ा रहता है—अस्थिर, जड़। वह कभी भी अपने स्थान से आगे नहीं बड़ पाता और एक स्थान पर टिके रहना भी कठिन है। कारण की दो ही स्थितियाँ संभव है-या तो आगे बढ़ना, या पीछे हटना। जो आगे नहीं बढ़ता है, प्रकृति उसे पीछे धकेल देती है।
सफलता और उन्नति के लिए आवश्यक है कि कोई भी कार्य शुरु करने से पहले खूब सोच विचार कर लिया जाए। पर जब यह निश्चय हो जाए कि यह काम करना है तो फिर दृढ़ता पूर्वक उसे करें। निराशा को पास न फटकने दे। वह अपने मार्ग पर आगे बढ़ता हुआ ठोकरें खाए तो अधिक सावधानी से पाँव रखे, गिर पड़े तो दुबारा उठ खड़ा हो। पास पैसा न हो, कोई साथ देने वाला न हो, बाहरी शक्तियाँ आगे बढ़ने से रोकती हों, पर मन आगे बढ़ने की प्रेरणा देता हो, अपना लक्ष्य ध्रुव तारे की तरह सामने दिखाई देता हो, तभी सफलता मिलती है।
जिस मार्ग को पकड़ो, उस पर दृढ़ता से जमे रहो, तो कठिन से कठिन काम भी सरल हो जाएगा। दुनिया भर का ज्ञान और मान तुम्हारे चरण चूमेगा। तुम देखोगे कि तुम्हारे वे मित्र, जिन्होंने तुम्हारे साथ ही काम शुरु किया था, पर काई छोटी सी रुकावट आ जाने पर उसे छोड़कर बैट गए थे, वे अभी तक कुछ नहीं कर सके है। उनका समय और शक्ति ऐसे ही नष्ट हो गई है। कहावत है—‘दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए।‘ झुकाने वाला अर्थात पक्के इरादे वाला।
कैलाश मंडलोई ‘कदंब’
परिचय-2
(1) नाम -- कैलाश मंडलोंई
(2) पिता का नाम --श्री नानूराम मंडलोंई ‘कदंब’
(3) माता का नाम—श्रीमति नीलाबाई
(4) पत्नी का नाम—श्रीमति ललीता मंडलोई
(5) स्थाई पता : मु. पो.-रायबिड़पुरा तहसील व जिला- खरगोन (म.प्र.)
पिनकोड न.451439
मोबाईल नम्बर-9575419049
वाट्स एप न.-9575419049
ईमेल ID-kelashmandloi@gmail.com
(6)-शिक्षा :- एम. ए. हिन्दी,डी.एड.
(7)-जन्म दिनांक :- 15-06-1967
(8)-व्यवसाय- शिक्षक
(9)-प्रकाशन विवरण- कविताएँ, कहानी, आलेख, समिक्षा
(1) शैक्षिक दखल पत्रिका (2) हस्ताक्षर वेब पत्रिका (3) देश बंधु (4) रचनाकार (5) literature point (6) सेतु
(7) लोक जंग
(8) सामूहिक काव्य संग्रह में प्रकाशन हेतु दो संग्रह में कविताएँ चयनित।
(9) नव सृजन सामूहिक काव्य संग्रह प्रकाशित।
(10) वर्तमान सृजन-1 सामूहिक काव्य संग्रह प्रकाशित।
(11) एक पृष्ठ मेरा भी सामूहिक काव्य संग्रह प्रकाशित।
(12) नव काव्यांजलि सामूहिक काव्य संग्रह प्रकाशित।
(13) साहित्यमेध पुस्तक प्रकाशित।
(14) छंद कलश साझा पुस्तक प्रकाशित।
(13) विशेष पुरस्कार : 1- जिला स्तर पर कलेक्टर द्वारा सम्मानित
2-जिला स्तर पर पर्यावरण पर सम्मानित
3- जिला स्तर पर शिक्षक सम्मान से सम्मानित
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