एक संकल्प मातृभाषा हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा बने...
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आज हिन्दी दिवस पर हम संकल्प ले की हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा बने।हम हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने की पहल करें। आज आजादी के सत्तर वषों बाद भी हिन्दी को वो स्थान नहीं मिल पाया है जिसका हिन्दी को अधिकार है।आज आज हमें हिन्दी के मर्म और इसकी महत्ता को समझने की महती आवश्यकता है। आज हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे हिंदी भाषा के घटते महत्व से हमारे प्राचीन साहित्य की महत्ता से दूर होते जा रहे है, जिनमें हमारी संस्कृति और संस्कार की जड़े है। अंग्रेजी के मायावी प्रभाव के कारण हम अपने संस्कार तथा संस्कृति से दूर होते जा रहे है।
आज अंग्रेजी भाषा देश में विषमता की भाषा है तथा देश के बहुसंख्यक लोगों का शोषण इसलिए हो रहा है क्योकि वे अंग्रेजी भाषा नही जानते। देश की अदालतों में और दफ्तरों में इसलिये आम जनता को लुटना पड़ता है क्योकि वहाँ का अधिकतम काम अंग्रेजी में होता है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज अदालतों की भाषा अंग्रेजी भाषा है। कानून अंग्रेजी में है। सरकारी आदेश अंग्रेजी में होते है। और इसलिये भारत के नागरिक उस अंग्रेजी का शिकार और शोषित हो रहा है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने की कल्पना महात्मा गांधी ने की थी, और उन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के पीछे जो तर्क दिये थे उसमें सबसे मजबूत तर्क देश में हिन्दी का विशाल क्षेत्र में बोला जाना था। गांधी जी का कहना था कि जो भाषा देश में सर्वाधिक क्षेत्र बोली या समझी जा सकती है वह हिन्दी है, और हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने से हिन्दी भारत सरकार की भाषा भी बनेगी तथा आम आदमी की सहभागिता भी राज्य व्यवस्था में हो सकेगी।
स्व. डां. लोहिया ने जब अंग्रेजी हटाओ आंदोलन का सूत्रपात किया था तो उनका भी यह कहना था कि हिन्दी और क्षेत्रीय भाषायें परस्पर बहनें है राज्यों का काम काज राज्य भाषा में हो और देश में हिन्दी राष्ट्रभाषा के रुप में काम का आधार बने. उनका नारा था, ’’अंग्रेजी में काम न होगा फिर से देश गुलाम न होगा, चले देश में देशी भाषा’’ डॉ. लोहिया अंग्रेजी को साम्राज्यवाद और शोषण की भाषा मानते थे और यह निष्कर्ष तथ्यपरक भी है.
दूसरा पक्ष यह भी है कि जब अन्य देश अपनी मातृ भाषा को राष्ट्र भाषा अपनाकर उन्नति कर सकते है, तो हम क्यों झिझकते है। जबकि हिन्दी बोलने वालों की सर्वाधिक संख्या हमारे देश में है। यह बोलने, लिखने और पढ़ने में भी सरल है। हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा मिला चाहिए। प्रत्येक नागरिक को हिन्दी के प्रति स्नेह और सम्मान की भावना रखनी चाहिए। जो की एकता का बोध करती है।
किन्तु कुछ लोग अपना स्वार्थ साधने के लिए अंग्रेजी भाषा के पक्ष में खड़े है और इसे अपनाए रखने का एक राष्ट्रीय षड्यंत्र चला रहे है। ये लोग हिन्दी विरोध को अपनी राजनीति का आधार बनाते है और लोगो को कृत्रिम विवाद और संघर्ष में उलझा कर अपने राजनीतिक हित पूरा कर रहे है।
अतः आज हम हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने की पहल करें। देश नीति निर्माताओं से यही आशा और विश्वास है कि वे राष्ट्र के विकास में एवं राष्ट्रीय एकता में राष्ट्रभाषा के महत्व को अच्छे से समझते हुए हिंदी को राष्ट भाषा बनाने की पहल शुरू कर हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा घोषित करेंगे।
कैलाश मण्डलोई 'कदंब'
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