चिंतन के अंधेरे क्षितिज पर -------------- कुछ शब्द बुदबुदाये फूल पात सब बिखर गए ऐसी चली प्रचंड आंधी किसे कहे किसे सुनाए इंसान ईमान गवा बैठा दुर्गुणों की बाँध पोटली सद्गुणों को रौंदते पैरो तले श्रम की, न्याय की, समानता की, मानवता की, जीवन मूल्यों की, बुझाकर मशाल,
जाना था कहाँ?
कहाँ आ गए हम
चिंतन के अंधेरे क्षितिज पर।
बात कुछ ऐसी हुई कुछ शब्द डगमगाते चलते चले गए सीधे सपाट समतल रास्ते छोड़कर प्रश्न कुछ लिए हुए वह न रहा पास मेरे जिसे होना चाहिए पास मेरे वह न रहा उनके पास जिसे होना चाहिए उनके पास दुनिया बिगड़ी हम बिगड़े गरीब लाचार मजबूर ढो रहा दुखों का पहाड़ हम करते माडर्न इंण्डिया की बात झाँकते शब्द झाँकते रहे राई सी बात का पहाड़ बन गया
घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे
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मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के
जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता
था...
इसमें फूल भी है, काँटे भी है, गम के संग खुशी भी है।चुन लो आपको जो अच्छा लगे। शब्दों की कमी इस संसार में नहीं है- पर उन्हें चुन-चुन कर मोती सा मूल्यवान बनाना बड़ी बात है। बस ज्ञान-विज्ञान, भाव-अभाव, नूतन-पुरातन, गीत-अगीत, राग-विराग के कुछ मोती चुन रहा हूँ। कुछ अतीत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञान मोतीयों से मन के धागे में पिरोकर कविता, कहानी, गीत व आलेखों से सजा गुलदस्ता आपको सादर भेंट।
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