युद्धों का इतिहास

 


युद्धों का इतिहास वीरता का नहीं मनुष्य की मनुष्य के प्रति कायरता और डर का इतिहास है।

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     युद्धों का इतिहास वीरता का नहीं मनुष्य की मनुष्य के प्रति कायरता और डर का इतिहास है। जानवर कभी कोई शस्त्र दूसरे जानवर के विरुद्ध नहीं बनाता, अपने नाखून तराश कर अपने पेट की भूख से अधिक की हिंसा नहीं करता और अनावश्यक रूप से जानवरियत का प्रदर्शन भी नहीं करता मगर मनुष्य का डर कितना विकराल है, उसकी कायरता कितनी भयावह है कि इनके कारण उसने अपना मनुष्यत्व खो दिया है और विज्ञान का सहारा लेकर उसने जहाँ एक ओर निर्माण और विकास के मूर्द्धन्य शिखरों को स्पर्श किया, वही उन्हें एक साथ ध्वस्त कर देने व अपनी परमाणु-शक्ति से पृथ्वी को कई बार मिटा देने का राक्षसत्व  पैदा किया। मनुष्य जब हिंसक होता है, उसकी सभ्यता और संस्कृति के तमाम दावे थोथे नजर आते है। 

     यूगोस्लाविया वह  देश है जहाँ के सर्विया गणतंत्र में आस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या को लेकर विश्व-युद्ध का प्रथम विस्फोट हुआ था। हम जब भी किसी राष्ट्र का इतिहास हिंसक सैन्यवाद, अधिनायकवाद या अति-महतवाकांक्षी साम्राज्यवाद के रूप में देखते है तो हमें मनुष्य के उस चरित्र का पता चलता है जो मूल रूप से सभ्यता के इतने विकास के बावजूद रक्तपात प्रिय और जंगली है। दो-दो महायुद्ध तो मानवीय क्रूरता, स्वार्थ, और करुणा की कहानी कहते ही है लेकिन महायुद्धों के बाद की दुनिया का जिस प्रकार शक्ति-ध्रुवों में बटवारा हुआ है और जिस प्रकार इजराईल-फिलिस्तीन, लीविया- अमेरिका, ईरान-ईराक के बाकायदा युद्ध चले और जिस तरह छोटे-छोटे देशों में जातीय झगड़ों की हिंसा ने मारकाट की, उसे देखकर मनुष्य के सभ्य होने, शालीन होने, संवेदनवान होने और विश्व- मानव होने पर प्रश्न चिन्ह लग जाते है।

     राष्ट्रपति मार्शल टिटो जब भारत में पहली बार आए तो उन्होंने इतिहास की प्रवृत्ति और प्रकृति को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातें कही थी। उन्होंने कहा था कि इतिहास अकसर ऐसी घटनाओं की श्रृंखला है जिसमें अत्यंत उजाड़, उदास या उत्तेजक सैन्य चालकों अथवा कूटनीतिक उठापटकों  का वृतांत होता है और वह यह बताता है कि मनुष्य चालाक, लालची और युद्धोन्मादी के अलावा कुछ और नहीं। इसके विपरीत मनुष्य के स्वभाव का एक दूसरा पक्ष भी है जो उसके गीत एवं नृत्य, कला एवं शिल्प, दर्शन एवं संस्कृति, और रीति-रिवाजों में अभिव्यक्त होता है। इनसे इतिहास का एक बेहतर रास्ता तय होता है। अब आपको यह तय करना है कि आप विश्व-शांति एवं अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव चाहते हो या युद्ध की विभीषिका।      

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