पांच छंद
(०१)
विधा
घनमयूर छंद
विधान
(111 111 211 112 212 1 2)
17वर्ण,4 चरण, (7,6,4 वर्णों पर यति)
पुलकित सजनी, रुप झलकाती, लुभा रही।
धर कुटिल हँसी, तन मन काँटे, चुभा रही।।
इन नयनन की, नजर निराली, लगे भली।
बचकर रहना, नयन नशीले, ठगे अली।।
(०२)
विधा
दोधक/बन्धु/मधु छंद
विधान
[भगण भगण भगण+गुरु गुरु]
( 211 211 211 22
11वर्ण,,4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
छूट गये सब संग सहारे।
संकट में अब प्राण हमारे।।
आज तुझे यह दास पुकारे।
दूर करो मम संकट सारे।।
द्वार खड़े मत देर लगाओ।
लोभ बसा मन दूर भगाओ।।
देख तुझे सब दास निहारे।
दर्शन दो अब मोहन प्यारे।।
(०३)
विधा
मुक्तामणि छंद
विधान{25 मात्रा, 13,12 पर यति,
यति से पहले वाचिक भार 12 या [ल,गु]
चरणान्त में वाचिक भार 22 या [गु,गु]
चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत}
राम नाम मन में बसा, उनका ध्यान लगाओ।
छोड़ जग के काम बुरे, सत्य कर्म अपनाओ।।
कर भला काम जगत में, संग यही बस जाये।
नाम की नाव पकड़ ले, भव सागर तर जाये।।
(०४)
विधा
शंकर छंद
विधान–26 मात्रा,/16,10 पर यति,
अंत वाचिक भार 21,
चार चरण,क्रमागत दो-दो चरण तुकांत
हे प्रभु ज्ञान दाता ज्ञान दो,
नहीं मुझमें ज्ञान।
सत कर्म का शुभाशीष मिले,
दीजिये सद ज्ञान।।
सुंदर रूप बसा मन तेरा,
नहीं दूजा ध्यान।।
द्वार खड़ा मैं आन तिहारे,
दीजिये वरदान।।
(०५)
विधा
विजोहा छंदविधान–(रगण रगण)
[212 212]
6 वर्ण, 4 चरण,
दो दो चरण समतुकांत ।
शब्द तोला करो।
प्रेम घोला करो।।
जीव जागो सभी।
क्रोध त्यागो अभी।।
ज्ञान की बात हो।
मान की बात हो।।
हाथ में हाथ हो।
दोस्त का साथ हो।।
पास आओ जरा।
प्रेम पाओ जरा।।
नाहि भूला करो।
भाव प्रेमी भरो।।
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