हरी धरा हो (यशोदा छंद)


यशोदा छंद
विधान-[जगण गुरु गुरु]
      (121 22)
5 वर्ण प्रति तरण, चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत।
विषय-हरी धरा हो सभी सुखी हो


घने वनों में।
हरे तनों में।।
जड़े धसी है।
खुशी बसी है।।


हवा चली है।
लगे भली है।।
खिली कली है।
सजी अली है।।


करो भरोसा।
दिला दिलासा।।
घमंड छोडो।
सनेह जोड़ो।।


करो भलाई।
मिटे बुराई।।
सदा भला हो।
नहीं बुरा हो।।


हरी धरा हो।
हिया भरा हो।।
सभी सुखी हो।
नहीं दुखी हो।।


अभी बचाओ।
नहीं सताओ।।
धरा बचा ली।
खुशी बचा ली।।

 हमने जल गंदा किया


    कैलाश मंडलोई 'कदंब'

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