मन की उलझन


मन की उलझन
----------
परतों पर परतें, 
चट्टानों पर चट्टानें
निर्जन अरण्य-प्रदेश 
मन का सूनापन।
अनजानी 
अन-पहचानी 
अजीब सी कहानी
अजीब उसका रहस्य
उजाले की तलाश में
अंधेरे में भटकता मानव मन।
चालाक रोशनी 
हतप्रभ अँधेरा 
कभी संदेह दिखाता
मुस्कुराता उजाला
अँधेरे में चला जा रहा
कर्मों की काली परछाई लिए
समय की असुरता को दुर्बल बनाने
साजिश थी उसका रहस्य 
उलझा तेरे मेरे में
समझ नही पाया मानव मन की उलझन।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ