मन की उलझन ---------- परतों पर परतें, चट्टानों पर चट्टानें निर्जन अरण्य-प्रदेश मन का सूनापन। अनजानी अन-पहचानी अजीब सी कहानी अजीब उसका रहस्य उजाले की तलाश में अंधेरे में भटकता मानव मन। चालाक रोशनी हतप्रभ अँधेरा कभी संदेह दिखाता मुस्कुराता उजाला अँधेरे में चला जा रहा कर्मों की काली परछाई लिए समय की असुरता को दुर्बल बनाने साजिश थी उसका रहस्य उलझा तेरे मेरे में समझ नही पाया मानव मन की उलझन।
घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे
-
मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के
जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता
था...
इसमें फूल भी है, काँटे भी है, गम के संग खुशी भी है।चुन लो आपको जो अच्छा लगे। शब्दों की कमी इस संसार में नहीं है- पर उन्हें चुन-चुन कर मोती सा मूल्यवान बनाना बड़ी बात है। बस ज्ञान-विज्ञान, भाव-अभाव, नूतन-पुरातन, गीत-अगीत, राग-विराग के कुछ मोती चुन रहा हूँ। कुछ अतीत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञान मोतीयों से मन के धागे में पिरोकर कविता, कहानी, गीत व आलेखों से सजा गुलदस्ता आपको सादर भेंट।
0 टिप्पणियाँ