सारे जग से न्यारी माँ ------------- अपने रक्त कणों से सिंच जीवन पुष्प खिलाती नव जीवन नव तन देकर जग में मुझको लाती मेरे नन्हें कोमल तन को थपकी दे सहलाती मैं रूठा वह मुझे मनाती सीने से लगाती आँचल में छिपाती कितनी प्यारी-प्यारीमाँ
सारे जग से न्यारी माँ।
पास नहीं कुछ फिर भी कहीं से लाती खुद भूखी रहकर भरपेट मुझे खिलाती फूलों की फुलवारी सी ऐसी प्यारी-प्यारी माँ सारे जग से न्यारी माँ।
मैं हंसता वह खुश होती मैं रोता वह घबराती कष्ट जरा हो मुझको उसकी छाती फट जाती पाकर मेरी हर आहट मैं सोता वह जग जाती जरा भी ओझल होऊं आंखों से पल-पल मुझको तकती ऐसी प्यारी-प्यारी माँ सारे जग से न्यारी माँ।
स्वर्ग वहाँ है माँ जहाँ सुख का सागर माँ की गोदी क्या होता? गर माँ ना होती सारी धरती बाँझ होती जग जननी जग जायी माँ ऐसी प्यारी-प्यारी माँ सारे जग से न्यारी माँ।
घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे
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मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के
जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता
था...
इसमें फूल भी है, काँटे भी है, गम के संग खुशी भी है।चुन लो आपको जो अच्छा लगे। शब्दों की कमी इस संसार में नहीं है- पर उन्हें चुन-चुन कर मोती सा मूल्यवान बनाना बड़ी बात है। बस ज्ञान-विज्ञान, भाव-अभाव, नूतन-पुरातन, गीत-अगीत, राग-विराग के कुछ मोती चुन रहा हूँ। कुछ अतीत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञान मोतीयों से मन के धागे में पिरोकर कविता, कहानी, गीत व आलेखों से सजा गुलदस्ता आपको सादर भेंट।
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