सारे जग से न्यारी माँ


सारे जग से न्यारी माँ
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अपने
रक्त कणों से सिंच  
जीवन पुष्प खिलाती 
नव जीवन 
नव तन देकर 
जग में मुझको लाती 
मेरे नन्हें 
कोमल तन को
थपकी दे सहलाती 
मैं रूठा 
वह मुझे मनाती 
सीने से लगाती 
आँचल में छिपाती 
कितनी प्यारी-प्यारी 
माँ

सारे जग से न्यारी माँ। 


पास नहीं कुछ
फिर भी कहीं से लाती
खुद भूखी रहकर
भरपेट मुझे खिलाती 
फूलों की फुलवारी सी 
ऐसी प्यारी-प्यारी माँ 
सारे जग से न्यारी माँ। 


मैं हंसता 
वह खुश होती
मैं रोता वह घबराती
कष्ट जरा हो मुझको
उसकी छाती फट जाती
पाकर मेरी हर आहट 
मैं सोता वह जग जाती
जरा भी ओझल
होऊं आंखों से
पल-पल मुझको तकती
ऐसी प्यारी-प्यारी माँ 
सारे जग से न्यारी माँ। 


स्वर्ग वहाँ 
है माँ जहाँ 
सुख का सागर माँ की गोदी 
क्या होता? 
गर माँ ना होती
सारी धरती बाँझ होती
जग जननी जग जायी माँ
ऐसी प्यारी-प्यारी माँ 
सारे जग से न्यारी माँ। 


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