एक पहेली क्या है काला धन?
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एक पहेली
क्या है काला धन?
काया पर, धूमिल सा, कालिख सा,
रंगीलापन या मटमैलापन
समझ नहीं पाया मेरा मन।
अपनी स्वार्थी भावना से
खिल जाते काले धन के अनगिनत फूल
विश्व बगिया की पौध पर
जिन्हें विश्व के कर्णधारों ने सींचा
ठहरो
उन पौधों के नाम गिनाता
पाप, भ्रष्टाचार,
उनकी दुष्टता सुनाता
ये पनपते है दफ्तरों में,
राजनीति के गलियारे में
न्यायालय में,
जेलों की दीवारों में
धनवानों के व्यापार में।
विशैली पृकृति के ये पौधे,
नहीं पनप पाते है स्वप्रेरणा से
इन्हें पैदा करती है
सामाजिक कुरीतियां, कुछ अनैतिक नीतियां
कालाधन एक बीमारी
इससे फैली भ्रष्टाचारी
संक्रमित हुए नेता, व्यापारी
हर छोटा बड़ा अधिकारी कर्मचारी
ये बने भ्रष्टाचारी
ये धनवान भिखारी
जिन्हें विचलित कर दिया
उनके लक्ष्य से
भ्रष्टाचार आयोग भी क्या करें
हर जगह पनप रही
गाजर घास की तरह
भ्रष्टाचार की पौध
रिश्वत की खाद खाकर
खाने को जनता के
खरे पसीने की कमाई
हो रहा है काला बाजार
सरकारी कार्यालयों में
मुंह खोले खड़ा
स्वार्थ, लालच, बेईमानी का नाग
झूठ, फरेब, छल-कपट की
लपलपाती जिव्हाऐं
न जानें कितनी लपलपा रही है
राज सत्ता के गलियारे में
जेलों में, न्यायालय में
गीता, कुरान पर हाथ रख कर
लपलपा रही है
नोचने को, खरोचने को
कालिख से पुते मन
देख उजले तन
बड़े-बड़े बगलों में
चमचमाती कारों में बैठें
इनके मस्तक की लकीरे,
मुंह पर लगा खून
साफ गवाही दे रहा है
ये ऐसे साफ बगुले है
कमल के फूल है
जो भ्रष्टाचार का
कीचड़ खा कर पलते है
यह मन यायावर कहीं धूप कहीं छांव
आशा और निराशा की
झलकियों में डूबा जीवन
समझोता तिमिर से कर रही किरन
छल रहा है राम को कंचनी हिरन
हजारों गाँवों और शहरों की
सुख दुःख से लिपटी
फाईलों को अपने गर्भ में छिपाए
हे सचिवालय तुझे नमन
क्या है काला धन?
समझ नहीं पाया मेरा मन।
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