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प्रश्न करने में क्यों हिचकिचाते बच्चे?
आज का महत्वपूर्ण विषय है छात्रों का शिक्षकों से प्रश्न करने से डरना | जेनिफर हडसन ने कहा है कि उत्तर से मत डरिए, प्रश्न न पूछे जाने से डरिए | आज सच्चाई बिल्कुल इसके विपरीत है | जनता अपने रहनुमाओं से प्रश्न पूछने से डर रही है | कर्मचारी अधिकारियों से, बच्चे शिक्षकों से | छात्रों में यह डर प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी स्तरों में समान रूप से दिखाई देता है| अधिकतर शिक्षकों की आम शिकायत होती है की बच्चे कक्षा में प्रश्न नहीं पूछते है| छात्र अपने मन में प्रश्नों का गुबार दबाए रहते है| बच्चे ही क्यों बड़े भी अधिकतर प्रश्न पूछने में अपने को असहज महसूस करते है|
“ सवालों में उलझा बचपन ”
जब बच्चा चीजों को देखना, पहचानना व महसूस करना शुरू करता है तो उसके बाल-मन में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि वह क्या है ? वह हर वस्तु को मुंह में भरता, चबाता, चखता उसे तोड़कर ,फोड़कर जानना चाहता है| नन्हे बच्चों को अपने जीवन के आरम्भिक वर्षों में हर चीज आकर्षक व अच्छी लगती है| वे नई-नई चीजों के बारे में जानने की जिज्ञासा में होते है| जब बच्चा बोलने लगता है तो वह अनगिनत प्रश्न पूछता है| नई वस्तु के प्रति उसमें स्वाभाविक जिज्ञासा होती है| इसे मासूम मन में उपजी जिज्ञासा कहें या सब कुछ जान लेने की जल्दबाजी, क्यों और कैसे का सिलसिला कभी खत्म नहीं होता| कौतूहल को शांत करने के लिए वे अपने माता-पिता से, भाई-बहन से, या बड़े लोगों से तरह-तरह के प्रश्न पूछता है|
बालमन का एक उदाहरण देखते है – अभी पिछले दिनों विधानसभा चुनाव में पंक्ति में खड़ी महिला के साथ उसका पाँच या छह वर्ष का बच्चा भी खड़ा था| जब देर तक खड़ा-खड़ा बच्चा थक गया, तो उकता कर उसने माँ से पूछा “माँ हम वोट कब डालेंगे?” जब तुम बड़े हो जाओगे माँ ने कहा| वह फिर बोला “ माँ वोट क्यों डालते है” माँ का उत्तर था बेटा वोट डालने से हमें अच्छी सड़कें मिलेगी, स्वच्छ पानी मिलेगा, बिजली मिलेगी, अच्छे स्कूल मिलेंगे| बालक फिर भी चुप न हुआ, उसने पूछा “माँ हम वोट किसको देंगे?” और इससे पहले की माँ कुछ जवाब देती, उसकी वोट डालने की बारी आ गई | वह वोट डालने चली गई और बालक बाहर “ड्यूटी” पर तैनात गार्ड के पास खड़ा अपनी माँ की राह देखता रहा| यह तो थी एक छोटे बच्चे की जिज्ञासा, जो बड़े होने पर निरन्तर बड़ती जाएगी यदि उसकी जानने की उत्सुकता को शिक्षक, माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा पूरा सहयोग व प्यार दुलार मिलेगा|
बालमन में “नकारात्मकता” का बीजारोपण
कहते है की सुकरात को फांसी देने से पहले उससे पूछा गया की तुम्हारी सबसे बड़ी इच्छा क्या है ? उसने उत्तर दिया मेरी सबसे बड़ी आकांक्षा यह है कि एथेन्स के सबसे ऊंचे स्थान पर जाऊँ और ऊँची आवाज में लोगों से कहूँ कि हे लोगों क्यों अपने जीवन के मूल्यवान वर्षों को धन संचित करने में खर्च कर रहें हो, तुम धन के वारिस यानी बच्चों की शिक्षा व प्रशिक्षा को महत्व क्यों नहीं देते हो? बहुत से महान व्यक्तियों, विद्वानों और शिक्षा से जुड़े व्यक्तियों के अनुसार पड़ाई-लिखाई के लिए सबसे अच्छा समय बाल्यकाल है| इस आधार पर अगर बच्चे की शिक्षा-प्रशिक्षा के लिए आवश्यक सुविधा व संभावनाएं दी जाए तो उसके अंदर मौजूद योग्यताएं व क्षमता अच्छी तरह निखरेगी|
माता-पिता अकसर बच्चों के सवालों को लेकर टाल-मटोल की मानसिकता रखते है| यह स्वीकार करे की बच्चों की यह उम्र जिज्ञासा से भरी होती है और उसके मन में पल-पल कई सवाल जन्म लेते है| याद रखिये बच्चों का मन स्पष्ट और निर्मल होता है उसके मन में उठ रहे सवालों को सही ढंग से शांत करना हर अभिभावक की जिम्मेदारी है| यह एक महत्वपूर्ण क्षण होता है जब आप बच्चे को सही रास्ता दिखा सकते है, लेकिन अकसर इसके विपरीत होता है, और उन्हें इन सवालों के सही-सही जवाब के बदले गोल-मोल जवाब और जरूरत से ज्यादा पूछने पर डाँट मिलती है| कई बार तो प्रश्न ही ऐसे होते है कि अभिभावक उलझकर रह जाते है| उनके प्रश्नों को टाला जाना ही बड़ों को बचने का एकमात्र मार्ग नजर आता है| हम सब के लिए जरूरी है की अगर बच्चे के सवाल अटपटे और उलझाऊ हो तो आप उन्हें कुछ समय बाद बात करने को कहे और बार-बार समझाइए पर गुस्सा या टालमटोल ना करें|
कई बार बच्चों के सवालों को माथापच्ची समझ उन्हें निपटाने की सोच के साथ अभिभावक गलत जवाब भी दे देते है, जबकि ऐसा कभी भी नहीं होना चाहिए | अत: माता-पिता, अभिभावकों को चाहिए जहाँ तक हो सके बच्चों के सवालों के गलत जवाब कभी न दे | बच्चों की जिज्ञासा को सही तरीके से शांत करें| आधे-अधूरे या गलत ज्ञान वाले बच्चे अपने आपको कमजोर या छोटा महसूस करते है |
अधिकतर बड़ों को बच्चों से यह कहते सुना होगा कि :- ज्यादा बकवास करते हो, चुप रहो, जब दो बड़े बात कर रहे हो तो बीच में मत बोला करो, ये न करो ,वह न करो| अरे भाई बच्चा जब आपस में बात नहीं करेगा तो सीखेगा कैसे? उसकी समझ का विकास कैसे होगा| एक तरफ आप कहते हो की बच्चे प्रश्न पूछते नहीं है और दूसरी तरफ आप उन्हें चुप करना चाहते हो| इस प्रकार के व्यवहार से बच्चे के आत्मविश्वास में कमी आ जाती है, और इसी कमी के चलते उसे हमेशा यह डर बना रहता है की कहीं मेरे प्रश्न पूछने से मैं उपहास का पात्र न बनूं| और वह प्रश्न पूछने से कतराता है |
बच्चों को सुधारे मत उन्हें प्रेरित करे
बच्चों को प्रेरणा की जरूरत होती है, सुधार की नहीं | आपको एक ऐसा मददगार व अनुकूल माहौल तैयार करना है, जिसमें उनकी समझ विकसित होकर फल-फूल सके | हमें चाहिए की बच्चों को अधिक से अधिक सवाल पूछने के लिए प्रेरित किया जाए और यह ऐसे तरीकों से कराया जाए कि उन्हें पता ही न चले और वे खुद ही बेचैन होकर प्रश्न पूछने लगे| बच्चे अधिकतर उन बातों से आपका प्रतिरोध करेंगे जिन पर वे जानते है कि वे सही है |
प्रश्न उठेंगे तो जवाब ढूंढने की बेचैनी होगी, परिकल्पना बनेगी और बच्चे उसके उत्तर खोजने का प्रयत्न करेंगे| क्या करें की बच्चे संकोच के दायरे से बाहर आकर अपनी झिझक को दूर कर बातचीत करें, संवाद करें, फिर उनकी पसंद – नापसंद को जाँच कर बातचीत को आगे बढ़ाएं| बच्चों की झिझक मिटने व प्रश्न पूछने के कौशल विकास हेतु बाल सभा में थिएटर का अधिकाधिक प्रयोग, कहानियाँ, समूह प्रस्तुतियां करवाना | प्रार्थना सभा में बच्चों को अलग-अलग विषयों पर अपने मौलिक विचार प्रस्तुत करने एवं सवाल जवाब का मौका दिया जाना है| बच्चों की सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों को अच्छी तरह समझते हुए बच्चों से दोस्ताना सम्बन्ध बनाना | इस प्रकार एक अनुकूल माहौल उपस्थित कर हम बच्चों को प्रश्न करने हेतु प्रेरित कर सकते है |
http://teachersofindia.org/hi/ebook/शैक्षिक-दख़ल-अंक-8-जुलाई2016#
कैलाश मंडलोई ‘कदंब’
सहायक शिक्षक कन्या मा. वि. रायबिड़पुरा
खरगोन (मध्यप्रदेश)
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