मीठी वाणी बोलिए,


मीठी वाणी बोलिए, मधुरस का रस पान कीजिए



         सुनी-सुनाई बातें भी बड़े काम की होती


      जब कोई यह कहता है, या हम कहीं लिखा हुआ देखते हैं, कि मीठी वाणी बोलिए, निंदा रस को त्यागिए, सुबह जल्दी जागिए, सकारात्मक सोचिए, पठन-पाठन कीजिए। तो अक्सर लोग इस बात को लेकर काफी गंभीर नहीं होते। इसे हल्के में लेते की ये तो सब सुनी सुनाई बातें हैं। और मन ही मन सोचते हैं कि हमें सब पता है। हम सब जानते हैं। लेकिन ऐसा सोचने वाले अधिकांश लोग वास्तव में वे नहीं जानते की ये सुनी-सुनाई बातें जीवन में बड़े काम की है। हमें सब पता है, यह सोचकर आगे बढ़ जाना, यही पर वे सबसे बड़ा भूल कर जाते हैं, और काम की बातों को अनसुना कर जीवन में कष्ट उठाते हैं।
       क्या आप भी ऐसी मानसिकता से ग्रसित हो, कि ये तो सब सुनी-सुनाई बातें हैं। तो जितना जल्दी हो सके इससे बाहर आइए। और अपने जीवन में इन्हें अपना कर अपने जीवन को सार्थक एवं आनंदित बनाइए।
     

  आपकी भाषा आपके ज्ञान की पहचान है


          हर व्यक्ति के स्वभाव व उसके ज्ञान की पहचान उसके बोलने से ही होती है। उसकी भाषा से होती है। चाहे यह व्यवहार व्यक्तिगत हो या सामाजिक। जब हम व्यक्तिगत रूप से व्यवहार करते हैं, तो यह व्यक्ति व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करती है। और जब हम सामुहिक रूप से बात करते हैं तो यह समाज को प्रभावित करती है।
     

        मधुर वाणी

कहते हैं शब्दों में बहुत ही ताकत होती है। एक गलत शब्द हमारा बना-बनाया काम बिगाड़ देता है। वहीं सार्थक शब्दों में वह ताकत होती है जो बिगड़े काम को बना देते हैं। भटके हुए इंसान को भी सही मार्ग पर ले आते हैं।
शब्द का एक अर्थ होता है। शब्द का भावार्थ होता है।  शब्द से वक़्त एवं श्रोता के हृदय में  एक भाव रस की निष्पत्ति होती। जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप अनुभव की अनुभूति होती है। और कार्य निष्पादित होता है। अक्सर परिवारों में देखा गया है कि झगड़े की जड़ कटु वचन होते हैं। अतः आपसी रिश्तों व भाईचारे में कटु वचनों की जगह नहीं है। यदि आप जाने-अनजाने में भी कटु वचनों का प्रयोग करते हो तो जितनी जल्दी हो सके उन्हें अपनी जिव्हा से निकाल फेंके। मुख में कटु वचनों के रहते आपसी रिश्तों में प्रेम भाईचारे की कल्पना करना ही बेकार है।         

   वाणी ऐसी बोलिए


        कबीर दास जी का यह दोहा आज भी सार्थक है:-कि
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।
     कबीर दास जी के इस दोहे में स्पष्ट सन्देश हैं, कि प्रत्येक मनुष्य को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो श्रोता (सुनने वाले) के मन को आनंदित (अच्छी लगे) करे। ऐसी भाषा सुनने वालो को तो सुख का अनुभव कराती ही है, इसके साथ स्वयं का मन भी आनंद का अनुभव करता है। ऐसी ही मीठी वाणी के उपयोग से हम किसी भी व्यक्ति को उसके प्रति हमारे प्यार और आदर का एहसास करा सकते है।


              मधुर शब्द की महत्ता


        आप यहां इस गीतिका के माध्यम से मधुर शब्द की महत्ता को आत्मसात कर अपनी वाणी में मधुरस घोलकर जीवन को आनंदित करे।
शब्द का चिंतन मनन कर, शब्द मधुरस घोल दे।
शब्द को पहचान प्राणी, शब्द मीठे बोल दे।। 
शब्द तीखे बाण से तो, शब्द लेते प्राण भी।
शब्द से ही प्राण पुलकित, शब्द से निर्वाण भी।।
शब्द से ना वार करना, शब्द होते शूल से।
शब्द से बस प्यार करना, शब्द होते फूल से।।
शब्द मधु रस है घुले तो, शब्द धन अनमोल दे।
शब्द का तू मोल कर ले, शब्द घुंडी खोल दे।।
शब्द मन अनुराग भर दे, शब्द मन श्रृंगार दे।
शब्द मन वैराग भर दे, शब्द से तन त्याग दे।।
शब्द की आराधना कर, शब्द की जय बोल दे।
शब्द का संधान कर ले, शब्द शक्ति तौल दे।।
शब्द शीतलता कहीं तो, शब्द सुलगाते कहीं।
शब्द रस वर्षा कहीं तो, शब्द दहकाते कहीं।।
शब्द का सुंदर चयन कर, शब्द मिश्री घोल दे।
शब्द मन अनुराग भर दे, शब्द रसना घोल दे।। 


         शब्दों में युद्ध करने की शक्ति


    कहते हैं महाभारत में द्रोपदी के कटु वचन "अंधे का पुत्र अंधा" दुर्योधन के हृदय को शूल की तरह चुभ गये और फिर इसके परिणाम स्वरूप महाभारत युद्ध हुआ।
      वास्तव में यह सच है शब्द शक्तिमान है ….. क्या महान प्रेरणा और प्रेरणा संदेश शब्दों में निहतार्थ है? “कभी-कभी यह शब्द जीवन को प्रेरित करने के लिए सशक्तिकरण और प्रोत्साहन के लिए नितांत आवश्यक होते है। शब्दों में हमारे दिमाग को खोलने और हमारे विचार से युद्ध को बदलने की शक्ति है। अपने दिलचस्प शब्दों से प्यार करें। दुलार करें और अपनी जिव्हा पर मधुर शब्दों को आने दे। उन्होंने शीतल मंद, मलयज पवन से मुखरित होने दे।


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2 टिप्पणियाँ

Sudha Devrani ने कहा…
शब्द तीखे बाण से तो, शब्द लेते प्राण भी।
शब्द से ही प्राण पुलकित, शब्द से निर्वाण भी
शब्द ही ब्रह्म है‌ ‌‌
शब्दों का महत्व बताया बहुत ही सुनु लेख।
जी सादर नमन हार्दिक