कहाँ चले गये वो लोग धीर से गम्भीर थे आज कहाँ खो गया उसका धैर्य? शहर की हवा बदली- बदली सी कुछ सड़कें, कुछ गलियां सहमी-सहमी सी जहाँ रोती है खामोशी छल प्रपंच के ये गलियारे लील रहे है स्वप्न हमारे फिर से, वही गीत राग द्वेष के आज गुन गुना रहा है कौन?
फिर लौट आया नफरतों का मौसम मंडराने लगे है साजिशों के बादल चलने लगी है उदासीयों की आँधियाँ बुन रहा साजिशों के जाल आज कौन?
सूख गया आंखों का पानी बह रही स्वारथ की नदियाँ डुबो रही इंसानियत को न्याय छुपा सब देख रहा अन्याय की काली करतूतें कौन सौदा कर रहा अमन और चैन का?
सुन रहा है मौन सा अन्याय अत्याचार वह, चुपचाप कौन? देखो कोने-कोने से शहर-शहर हर डगर-डगर से उठ रही लपटें वैमनस्य की आज सारा चमन जल रहा क्यों? कौन आग लगा रहा दिलों में जिम्मेदार है कौन?
साँप का विष पाले मन में। घूम रहे कुछ लोग वतन में।। दिखते भोलेभाले तन से। गद्दारी करते है वतन से।। इनका सूपड़ा साफ करो। मत इनको अब माफ करो।। इनको मारो इनके बिलों में। रहम न पालो अब दिलों में।।
बैचैन अधीर मेरा मन कैसे धीर बधाऊँ? कैसे धीरज पाऊँ? खोजो पकड़ो इनके आकाओं को।
घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे
-
मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के
जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता
था...
इसमें फूल भी है, काँटे भी है, गम के संग खुशी भी है।चुन लो आपको जो अच्छा लगे। शब्दों की कमी इस संसार में नहीं है- पर उन्हें चुन-चुन कर मोती सा मूल्यवान बनाना बड़ी बात है। बस ज्ञान-विज्ञान, भाव-अभाव, नूतन-पुरातन, गीत-अगीत, राग-विराग के कुछ मोती चुन रहा हूँ। कुछ अतीत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञान मोतीयों से मन के धागे में पिरोकर कविता, कहानी, गीत व आलेखों से सजा गुलदस्ता आपको सादर भेंट।
2 टिप्पणियाँ
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्