अंतर्मन की आवाज --------------------- दिन के उजाले में साँझ की हर साँस को भोर का विश्वास दे शब्द बुनें अर्थ गढ़े आस की तलाश में दूर तक गमन किया कुछ न कर सके हम बह गए बहाव में भाव के अभाव में और जिंदगी गुजर गई समय के पदचाप पर।
मुक्त होना चाहता हूँ ---------------------- झूठी कथा कहानी सुनाकर छला धर्म के नाम पर झूठे कर्म-कांड बताकर छला कर्म के नाम पर मुक्त होना चाहता हूँ शब्दों के भ्रम जाल से।
सदियों से झूठ की फसल उगाई जा रही है आस्था के नाम पर धर्म का लेबल लगाकर।
कथनी और करनी में अंतर बिल-बिला उठा मन सच की घिनौनी तस्वीर देखकर सोच रहा कही छिप जाऊं निशब्दता की चादर ओढ़े।
मुरदे भी सुनते है... --------------------------- जाना था कहाँ आ गए हम कहाँ चिंतन के अंधेरे क्षितिज पर दुनिया बिगड़ी हम बिगड़े हम भ्रष्ट हुए हम नष्ट हुए तम का छाया घोर अँधेरा गम ने हम सबको आ घेरा कोई कहे ऐसा करो कोई कहे ऐसा न करो कोई कहे यह धर्म नहीं कोई कहे है धर्म यही सुनता नही आदमी दिन में आदमी की बातें रात में सुनते हैं मुरदे मुरदों का बातें।
राई सी बात का बन गया पहाड़ ---------------------- बात कुछ ऐसी हुई झाँकते शब्द झाँकते रहे मोड़ पर खड़े- खड़े कुछ शब्द प्रश्न कुछ लिए हुए डगमगाते चलते चले गए कुछ शब्द आपस में फुसफुसाए. वह न रहा पास मेरे जिसे होना चाहिए पास मेरे वह न रहा उनके पास जिसे होना चाहिए उनके पास बुदबुदाते शब्द आपस में बुदबुदाये खोज नहीं पाए हम? न सच तक पहुँच पाए न असत्य को दीया पछाड़ राई सी बात का बन गया पहाड़।
कलमकार कब बन गया? ------------------------- छवियों की छत्र-छाया में कभी उमंग, कभी उल्लास कभी भावों की भँवर में उलझती लहरों से खिन्न मन ने कुछ शब्दों को उछाला अंतर्मन प्रतिध्वनित हुआ मद्धिम सी आवाज हुई मत इतना दौड़ाओ अपने मन के बेलगाम घोड़ों को और मैं कलम की तूलिका से पेपर के केनवास पर शब्दों को घुमाते, नचाते मन के भावों के रंगों में डुबोते हुए लिखता चला गया कविता का सृजन होता गया और मैं एक साधारण से इंसान से कलमकार कब बन गया ये तो मित्रों की प्रशंसा के बाद पता चला।
घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे
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मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के
जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता
था...
इसमें फूल भी है, काँटे भी है, गम के संग खुशी भी है।चुन लो आपको जो अच्छा लगे। शब्दों की कमी इस संसार में नहीं है- पर उन्हें चुन-चुन कर मोती सा मूल्यवान बनाना बड़ी बात है। बस ज्ञान-विज्ञान, भाव-अभाव, नूतन-पुरातन, गीत-अगीत, राग-विराग के कुछ मोती चुन रहा हूँ। कुछ अतीत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञान मोतीयों से मन के धागे में पिरोकर कविता, कहानी, गीत व आलेखों से सजा गुलदस्ता आपको सादर भेंट।
1 टिप्पणियाँ
झूठ की फसल
उगाई जा रही है
आस्था के नाम पर
धर्म का लेबल लगाकर।
बिलकुल सही कहा ...
एक से बढ़कर एक बहुत ही सुन्दर एवं पार्क रचनाएं।