जरा ध्यान लगाकर सुनो तो?ये कैसी आवाजें है?
देखा नहीपर सुना हैकिताबों में पढ़ा हैपहले शास्त्रार्थ हुआ करते थेजीवन जीने के लिएआत्मा की मुक्ति के लिएक्यों मिला जीवन हमें यह जानने के लिए।आज टीवी पर डिबेट होती हैकितनी सार्थककितनी निर्थकसमस्या सुलझाने के लिएया और अधिक उलझाने के लिएसमझ नहीं पाया मन।
वह कौन है जो सुनाई तो देतामगर दिखाई नही देताजाना था कहाँ?आ गए हम कहाँ?चिंतन के अंधेरे क्षितिज पर।हमारे फेफड़े नही है सिर्फ ख़ून साफ करने के पंप भर,इसमें दिल नाम की चीज भी धड़कती है जरा अपने दिल नाम के अंग पर रखना हाथ और एक बात तो बताना!मेरे हृदय की धक-धक मुझसे पूछतीक्या आदर्श खोखले हो गये?या भूल गए आदर्शों को?कौन सी दीमक हमारे संस्कारों को खा रही?
कहते हैंराम, कृष्ण, गौतम, गांधी की हम सन्तानेवेदों की रचनाओं से पल्लवित, पुलकित प्राण यहाँरामायण व गीता का घर-घर होता गान यहां।जो कहते हैं आदमी अपने हाथ-पाँव से प्रेम करे,बुद्धि से लोकसेवा करे हृदय से प्रेम करे संसार में आनन्द ही आनन्द है पर यहाँ तो देखोदुःख की भरमार देखने में आती है-लड़ाई-झगड़ा, ईर्ष्या-द्वेष, मारपीट और खून-खच्चर जो लोग एक ही देश के हैं, एक ही मातृ-भूमि या पितृभूमि की सन्तान हैं, एक ही गाँव और एक ही मोहल्ले में रहते हैं, उनमें भी वादविवाद, चोरी-डाके और मुकदमेबाजी क्यों ? यार-दोस्तों और रिश्तेदारों की भी बात छोड़ दें, एक घर में भाई-भाई, भाई-बहिन, पिता-पुत्र, माँ-बेटे या स्त्री-पुरुष के मुक्त स्नेह में बाधा क्या ?
पढ़े-लिखों, विद्वानों और
धार्मिक कहे जाने वालों में अनबन या तकरार क्यों ? 'उन्नत' और 'सभ्य' राष्ट्रों द्वारा युद्ध और महायुद्ध की विनाश-लीला क्यों ? संसार में घोर अशान्ति का कारण क्या ? मानव को दानव और इन्सान को हैवान बनाने वाला,
समाज का सब से बड़ा अभिशाप क्या है?जरा ध्यान लगाकर सुनो तो?ये कैसी आवाजें है?जो सदियों से सुनाई दे रही है।मारो-मारोकाटो-काटोबांटो-बांटोऊंच नीच में बांटोजात धर्म में बांटोकिसी हाथ में झंडेकिसी हाथ में डंडेकिसी हाथ में माला फूल
किसी हाथ में तीखे शूल है।
4 टिप्पणियाँ
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अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
–शायद
किसी हाथ में तीखे शूल है।
–वाणी में भी शूल है
–सामयिक रचना