इंसान से मैं पेड़ बन जाऊं



उसके पास क्या है?
ना मुंह
ना दिल
ना दिमाग
ना उसके कान
देखो उस पेड़ को।



हमारे पास
क्या नहीं है?
आंखें हैं
दिल है 
दिमाग है
घर है
छत है
छाता है
रजाई है
पंखा है
हवा है
सब कुछ तो है हमारे पास
करम है धरम है
गीता है कुरान है
बाइबल है गुरुग्रंथ है
फिर भी
लड़ते हैं
झगड़ते हैं मानव, है ना?

उसके पास क्या है?
न छाता
न कोई रजाई
न शिकवा
न गिला उसे
धूप सहता
ठंड सहता
हवा सहता
कभी न वह कुछ कहता
चाहे मारो पत्थर
चाहे कुल्हाड़ी से काटो
फिर भी हमें वह
देता ही देता है
फल देता
फूल देता
हवा देता
औषधि देता
सीतलता देता
छांया देता।

इतिहास गवाह है
आदि मानव से
आधुनिक मानव तक
पेड़ों ने पाला हमें
संस्कारों में ढाला 
मुंह को दिया निवाला 
चलना उसने हमें सिखाया
देकर लाठी हाथ।

सोचता हूँ
इंसान से मैं पेड़ बन जाऊं
ना तेरा
ना मेरा
ना धरम
ना करम
ना छल 
ना कपट
ना आंखें होगी
ना देखूंगा मैं
ना कान होंगे
ना सुनूंगा मैं
ना मुंह होगा
ना कहूंगा मैं
फिर ना झगड़ा होगा
ना होगी तकलीफ
इसीलिए सोचता हूँ
इंसान से मैं पेड़ बन जाऊं।

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