जब मनुष्य को प्रकृति ने पैदा किया तो उसमे अनेक गुणों के साथ 'जिज्ञासा' नाम का गुण भी डाल दिया, और अपने सारे रहस्यों पर पर्दा डाल दिया। जिज्ञासा के इस गुण के कारण ही मनुष्य पशुओं से अलग एवं श्रेष्ठ प्राणियों की श्रेणी में आता है। जिस मनुष्य में जिज्ञासा नहीं है तो उसमें और एक पशु में कोई अंतर नहीं है। इसीलिए तो कहा है कि जिज्ञासा ज्ञान की जननी है।
पर्दे के पीछे क्या है? यह जानने की जिज्ञासा किसके मन में नही है? अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए मनुष्य जीवन पर्यंत पर्दे के पीछे "तांकझांक" करता रहता है। इधर-उधर,यहाँ-वहाँ 'तांकझांक' करना मनुष्य की एक जन्मजात आदत रही है।
क्या आपको भी तांकझांक करने की आदत है? क्या आपने गौतम, महावीर, कणाद, गैलिलियो, न्यूटन, आइंस्टीन की तरह 'तांकझांक' की? "हाँ या ना"? भाई मुझे तो तांकझांक करने की आदत है। सावधान आपको तांकझांक करना ही, है तो आपको यह भी पता होना चाहिए कि कहाँ तांकझांक करना है और कहाँ नहीं। सही जगह तांकझांक करोगे तो प्रकृति के रहस्यों को समझ जाओगे। बुद्धिमान व्यक्ति कहलाओगे। ज्ञानी-विज्ञानी कहलाओगे। जीवन में पद- प्रतिष्ठा, मानसम्मान, सफलता और सुखशांति पाओगे। और अगर गलत जगह तांकझांक की तो बदनामी, अउन्नति, कष्ट और लोगों के डंडे खाओगे।
न्यूज पेपर की हेडलाइन पढ़ी 'पड़ोसी के घर में तांकझांक करने पर युवक को पीटा'। हां पीटना ही चाहिए ऐसे लोगों को। किसी दूसरे की जिंदगी में तांकझांक करना गलत बात है ना। लोग केवल सिर पर छत के लिए घर नहीं बनाते, बल्कि उन्हें निजता भी चाहिए होती है। निगरानी और निजता का मुद्दा आपस में जुड़ा हुआ है। अगर आपको ये पता हो कि आपकी निगरानी की जा रही है तो आप अपना बरताव बदलने पर मजबूर हो जाएंगे।
जैसे, अगर हमें पता हो कि हमारे फ़ोन और ईमेल की निगरानी की जा रही है, ये तो गलत बात हुई ना। ये हमारी निजता और स्वतंत्रता में घुसपैठ जैसा है। हम सबकी निजता की सीमाएँ होती हैं और हम नहीं चाहते कि दूसरे उसका उल्लंघन करें। यह बात मनुष्यों को आजतक भी समझ में नहीं आई। क्या आपको समझ में आई?अगर आपको तांकझांक ही करना है तो महावीर, कणाद, गैलिलियो, न्यूटन, आइंस्टीन की तरह 'तांकझांक' करो।
जब मानव पहली बार धरती पर आया और उसने आंखे खोली तो उसे वन, पहाड़, नदियाँ, समुद्र और सूरज,चाँद, सितारों के बीच उसने अपने आप को पाया। उसे हजारों सालों तक धूप, हवा, ठंड, बरसात उसको कुछ समझ नहीं आया।
आदिम युग से लेकर आधुनिक युग तक आने में मनुष्य को अनेकों कष्टदायक व्यवस्थाओं से गुजरना पड़ा। सबसे पहले मनुष्य जब धरती पर आया तो यहाँ कुछ नहीं था। न मकान, न सड़क, न बिजली, न मोटर-कार। न कपड़े, न दुकान। जंगल ही जंगल था। जंगली जीवजन्तु उसके जीवन साथी। तब मनुष्य, मनुष्य नहीं था वह आदिमानव था। जैसे जानवर खाते हैं वैसा खाता-पीता व रहता था। पहली बार जब जंगली जानवरों ने उसे काटा-पीटा तो कुछ पकड़ में आकर मारे गए, और कुछ डर कर पेड़ों पर चढ़ गए। जिन्होंने अपनी जान बचा ली वे हजारों वर्षों तक वह पेड़ों पर रहे और फलों को खा कर अपना जीवन बिताते रहे। वृक्ष की शाखाएं उसका आशियाना। इस डाली से उस डाली उसकी दौड़ थी।
कालांतर में जब कुछ स्थानों पर पेड़ खत्म हुए तो वह पेड़ से उतर कर जमीन पर आया। चार पैरों पर चलने वाला आदिमानव दो पैरों पर चलना सीख गया। आत्म सुरक्षा पत्थर के हथियार बनाए, आग जलाई। गुफाओं में रहने लगा। भोजन की तलाश खेती करना सीख गया। गुफाओं से निकलकर मकान बनाये। घर बना, गांव बना, परिवार बना, समाज बना। भाषा बनी, ज्ञान बना, विज्ञान बना। कलकारखाने, बिजली, सड़क रेल, हवाई जहाज, टीवी, मोबाइल, इंटरनेट अब कुछ आदि-आदि।
मानव को इतनी सारी समझ एकदम से नही आई बल्कि धीरे-धीरे उसके सामने समस्या आई उनमें तांकझांक की और उनका मुकाबला करते-करते कालांतर में उसे समझ आई। जव मनुष्य ने किचन में झाँका तो कुछ भी खाकर पेट भरना छोड़कर कर संतुलित, स्वादिष्ट एवं पौष्टिक भोजन करना सीख गया।
जब भोजन में झाँका तो कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन व खनिज लवण खाना सीख गया।
पदार्थ में झाँका तो तत्व, धातु, अधातु, अणु, परमाणु, इलेट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तक ढूढं लिया।
जब मानव ने सूरज चाँद सीतारों को झाँका तो पहले पहल तो सब ने एक स्वर में कह दिया ये सभी हमारी पृथ्वी के चक्कर लगा रहे हैं। इस आधार पर वेद,पुराण, बाइबल, कुरान लिख दिये। इनको लिखते समय भी कुछ अधिक तांकझांक करने वोलों को ये बात गले नहीं उतरी और उन्होंने कह दिया कि सूरज हमारे नही बल्कि हमारी पृथ्वी सूरज के चक्कर लगा रही है। पर उसकी सुनता कौन क्योंकि उनके पास कोई प्रमाण नहीं थे। वो तो भला हो उस गैलीलियो का जिसने दूरबीन बनाकर सप्रमाण बता दिया कि सूर्य स्थित है और पृथ्वी उसके चक्कर लगा रही हैं। और इस तांकझांक की उसे सजा भी मिली। लेकिन न्यूटन की तांकझांक काम कर गई और उसने सब को मना लिया।बस फिर क्या था कुछ लोग प्रकृति के हर उस रहस्यमय घटनाओं की ताकझांक करने लगे। किसी ने हवा में झाँका, किसी ने पानी में झाँका, किसी ने मिट्टी में झाँका, किसी ने शरीर में झाँका। धीरे-धीरे 18 वीं सदी के आते-आते हवा, पानी, मिट्टी, मौसम, शरीर आदि के भीतर झांकते -झांकते कुछ बुद्धिमान लोगों ने इनके बहुत सारे रहस्यों को सप्रमाण देखा और दुनिया को बता दिया। और बहुत सारी पुरानी मान्यताओं को खण्डित कर दिया।
ताकाझांकी की आदत मानव को कहाँ से कहाँ ले आई। कहाँ तो आदिमानव और कहाँ आधुनिक युग का मानव, मॉडर्न मानव। मानव की तांकझांक की आदत ने उन्हें ज्ञान, व्यवहार, विज्ञान, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा की समझ दी। आओ हम भी तांकझांक करें लोगों के घरों में नहीं, लोगों के निजी जीवन में नहीं बल्कि अपने अंतर मन में, किताबों, ज्ञान में, विज्ञान में, व्यहवार में और एक सुंदर एवं खुशहाल समाज का निर्माण करें।
0 टिप्पणियाँ