क्षमा भगवन कृपालु, गूढ़ बात सरल शब्दों में कहना आता नहीं में यह बोल-कुबोल बोल रहा हूं वाह कैसा मुखड़ा है ये मुखड़ा है कि थोबड़ा ऐसे बेसिरे मुंहों को चाहे मुखड़ा कहो या थोबड़ा दोनों चलते है। इनके लिए भाषा की लचक, व्याकरण के बन्धन, वाक्य-विन्यास, लिंग, पुल्लिंग, अलकार आदि कोई मायने नहीं ये शब्द तो सुन्दर वस्तुओं के लिए हैं। सुन्दरता तो कांच की कोठरी है, ठोकर लगी और चूर-चूर हो गयी। मान, अहंकार बिखर गया, दरार पड़ गयी ऐसे भुंह का क्या है ! या ऐसे अन्य मुंहों का क्या? जो कहानी पर सच्चाई का मुलम्मा चढाने के लिए कितना झूठ बोलता है और झूठ को सत्य में, बदलने के लिए कौन-कौन-सी उद्दंडता और आडम्बर की रचना रचता। हे भगवन दयालु, ये जो दयावान हैं न ये बड़े ही मुंहफट हैं ये तुमसे डरते भी हैं और नही भी डरते और डर कर भी नहीं डरते। ये तुमसे भी विद्रोही होकर बैठ जाना चाहते हैं ये तो तुमको भी चूर-चूर करने की जरूरत समझते हैं। और फिर यही तो है जिनके सहारे तुम्हारी बढ़ाई कायम है इन्हीं का बँठाया ही तो स्वर्ग सजता है ज्वार-भाटे उठते हैं, ज्वालामुखी फूटते हैं लेकिन बर्फ के नीचे गजब की गरमाइश होती है, ऐसी बातो की उड़ान का कोई अन्त नहीं। यह तो सब शब्दों का तिलस्म है, असाधारणता का जादू है। कौन एतवार करे पहले नम्बर के झूठे, मक्कार, दगाबाज, चोर पर। वैसे कलम और कागज इनके हाथ में है, अपने आपको जो चाहे बताते, दिखाते और मानते मनाते फिरते। झूठ ! झूठ ! झूठ ! और फिर भी सच, सच, सच ! कोई क्या समझे । क्या जाने । झुठ पर सच का मुलम्मा।
घर और उसका प्रभाव-बच्चों में संस्कार दे
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मनुष्य के विकास को ले कर एक बार एक प्रयोग किया गया. दो बच्चों को उन के
जन्मते ही घने जंगल में गुफा के भीतर रख दिया गया. उन्हें खाना तो दिया जाता
था...
इसमें फूल भी है, काँटे भी है, गम के संग खुशी भी है।चुन लो आपको जो अच्छा लगे। शब्दों की कमी इस संसार में नहीं है- पर उन्हें चुन-चुन कर मोती सा मूल्यवान बनाना बड़ी बात है। बस ज्ञान-विज्ञान, भाव-अभाव, नूतन-पुरातन, गीत-अगीत, राग-विराग के कुछ मोती चुन रहा हूँ। कुछ अतीत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञान मोतीयों से मन के धागे में पिरोकर कविता, कहानी, गीत व आलेखों से सजा गुलदस्ता आपको सादर भेंट।
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