सोनू आज एक नए और मजेदार खलौने लट्टू से खेलना सीख रही है। वह लट्टू पर रस्सी लपेटकर उसे जमीन पर घूमाने का प्रयास कर रही है। लेकिन उसका लट्टू घूम नहीं रहा है जबकि उसका भाई रोहन उसे बड़े मजे से घुमा रहा है। बार-बार प्रयास करने पर भी जब उसका लट्टू नहीं घूमता है तो वह झुंझलाकर उसे रस्सी सहित फेंक देती है। वह अपने पापा से पूछती है कि 'पापा भैया के हाथ से तो ये लट्टू खूब घूमता है और फिर मेरे हाथ से क्यों नहीं घूमता'?
पापा सोनू को समझाते हैं कि बेटा यह काम प्रयास का है तू थोड़ा और प्रयास कर तेरा लट्टू भी बड़ी आसानी से घूमने लगेगा। सोनू कहती है पापा मैं भी तो प्रयास कर रही हूँ। तब पापा कहते हैं कि बेटा सही दिशा में सही प्रयास से ही लट्टू घूमेगा। और फिर क्या देखते हैं कि सोनू का लट्टू भी उसके हाथ से घूमने लगा और वह जोर-जोर से उछल कर चिल्लाने लगी मेरा लट्टू भी घूम रहा-मेरा लट्टू भी घूम रहा। वह क्या देखती है कि थोड़ी देर घूमने के बाद लट्टू घूमना बंद कर देता है। वह फिर घुमाती हैं।
घूमते हुए लटटू को देखकर उसके मन में प्रश्न उठता है कि लटटू क्यों घूमता है? फिर मन ही मन वह उत्तर देती है कि लटटू को हम रस्सी से खींचकर घूमाते हैं। और रस्सी को खींचने में हाथ की ताकत लगाते है। ताकत अर्थात बल लगाते है। अब उसे थोड़े-थोड़े समझ में आने लगा कि लटटू को घुमाने में बल की जरूरत है। जब बल खत्म हो जाता है तो लटटू घूमना बंद कर देता है। वाह ये तो कितनी मजेदार बात हुई।
घूमते हुए लटटू को देखकर उसे याद आने लगा कि हमारे आसपास कितनी घूमती हुई वस्तुएं दिखाई देती है। उसने देखा कि पंखों की पंखुड़ियां, गाड़ियों के पहिये, सिलाई मशीन का व्हील न जाने कितनी मशीनों के पुर्जे घूम रहे हैं, और काम हो रहा है। कोई हाथ से, कोई बिजली से, कोई पेट्रोल-डीजल से, कोई हवा से, कोई पानी से, कोई कोयले से घूम रहा है। गजब की बात है सोनू मन ही मन बड़बड़ा रही है।
सोनू एक जिज्ञासु बच्ची है। उसे नई-नई चीजों के बारे में जानना एवं सीखना अच्छा लगता है। वह हर नई जानकारी को अपनी नोटबुक में लिखती हैं। उसने लट्टू के बारे में भी अपनी नोटबुक में लिखा, की लट्टू कैसे घूमता है। लिखते-लिखते उसे स्कूल की बात याद आ गई। दो दिन पहले उसे कक्षा में टीचर ने पढ़ाया था कि पृथ्वी पर दिन-रात, पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण होते हैं। अर्थात पृथ्वी लगातार लट्टू की भांति घूम रही है। उसे दिनरात होने का कारण तो समझ में आ गया। लेकिन ये बात उसको परेशान कर रही है कि लट्टू को तो हम घुमाते हैं लेकिन पृथ्वी को कौन घुमा रहा है? लटटू तो थोड़ी देर घूम कर रुक जाता है लेकिन पृथ्वी लगातार घूमती क्यों है? ये कभी रुकती क्यों नहीं है? ये कब से घूम रही है? और इसे कौन घुमा रहा है? वह इन प्रश्नों के उत्तर जानना चाहती है और उसने इतने सारे प्रश्नों की पोटली अपने पापा के सामने रख दी।
पापा ने कहा बेटा इसके बारे में मैं आज नहीं कल तुम्हें विस्तार से बताऊंगा। क्योंकि मैं किताबों में पढ़ूंगा की वैज्ञानिकों ने इसके बारे में क्या लिखा है। क्योंकि ऐसी बातों के बारे में खोज करना एवं बताना वैज्ञानिकों का काम है।
पृथ्वी क्यों घुमाती हैं? इसके बारे में जानकारी इकट्ठा कर पापा ने सोनू को बताना शुरू किया। बेटा वैज्ञानिकों के पास इसका कोई ठोस उत्तर तो नहीं है किंतु कुछ अनुमान ज़रूर हैं।
वैज्ञानिक इस सवाल के जवाब को सौरमंडल का निर्माण करने वाले कारणों से जोड़कर देखते हैं। इसके लिए हमें यह समझना होगा कि पृथ्वी का निर्माण कैसे हुआ।
सौर मंडल में मौजूद सभी चीज़ें जैसे ग्रह, क्षुद्रग्रह, तारे, और यहां तक कि आकाश गंगा के अस्तित्व में आने से पहले सारा आंतरिक्ष धूल और गैस के बादल भरा हुआ था। कालांतर में धूल और गैस के बादल का अपने ही वज़न से सिकुड़ने के कारण सूर्य और सौर मंडल का निर्माण हुआ था। अधिकांश गैस संघनित होकर सूर्य में परिवर्तित हो गई, जबकि शेष पदार्थ ग्रह और उपग्रह बने। इसके संकुचन से पहले, गैस के अणु और धूल के कण हर दिशा में गति कर रहे थे किंतु इनके ग्रह एवं उपग्रह बनाने से किसी समय पर कुछ कण एक विशेष दिशा में गति करने लगे। जिससे इनका घूर्णन शुरू हो गया।
पृथ्वी का निर्माण सूर्य के चारों ओर घूमने वाली गैस और धूल की एक डिस्क से हुआ। इस डिस्क में धूल और चट्टान के टुकड़े आपस में चिपक गए और पृथ्वी का निर्माण हुआ। और सौर मंडल का निर्माण हो गया। जैसे-जैसे इसका आकार बढ़ता गया, अंतरिक्ष की चट्टानें इस नए-नवेले ग्रह से टकराती रहीं और इन टक्करों की शक्ति से पृथ्वी घूमने लगी। टकराव ने पृथ्वी और सौर मंडल की सभी चीज़ों ने घुमना शुरू कर दिया।
न्यूटन के जड़त्व का नियम से यदि कोई बस्तु विरामावस्था में है तो वह तब तक विराम की अवस्था में ही रहेगी जब तक उसपर बाहरी बल लगाकर गतिशील नहीं किया जायेगा और यदि कोई वस्तु गतिशील है तो उस पर बाहरी बल लगाकर ही विरामावस्था में पहुँचाया जा सकता है। अंतरिक्ष में जड़त्व नहीं होने के करण पृथ्वी लगातार अपने अक्ष पर घूम रही है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी घूमती हुई ही पैदा हुई थी। इसके अस्तित्व में आने से लेकर अभी तक वह लगातार अपनी धुरी पर घूम रही है। सौर मंडल में मौजूद सभी चीज़ें (क्षुद्रग्रह, तारे, और यहां तक कि आकाश गंगा भी) घूमती हैं। इसके घूमने से ही हम रोज़ सूर्योदय और सूर्यास्त देखते हैं। और जब तक सूरज एक लाल दैत्य में परिवर्तित होकर पृथ्वी को निगल नहीं जाता तब तक ऐसे ही घूमती रहेगी।
सोनू को तो समझ में आ गया कि पृथ्वी क्यों घूमती है? उसने अपनी नोटबुक में एक बात और नोट कर ली। क्या आपको समझ में आया?
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