हां मेरी ही गलती थी


वह भी चाहती खुश हो घर
मैं भी चाहता खुश हो घर
फिर भी ना जाने क्यों कर
उग आते झगड़े के पर
परिवार में मियाँ बीवी
कभी वो तो कभी मैं हावी
कोई कमी न थी घर में
पर झगड़ा होता पलभर में।

करने लगा हरदिन जतन
कैसे झगड़े का हो पतन
मैंने देखा सोचा भाला
झगड़े का यूँ हल निकाला।

बस मान की वह भूखी थी
इसीलिए वह दुखी थी
उसे मनाने की खातिर
मान ली गलती मैंने
और बोल दिया चुपके से
उसके कानों में
हाँ मेरी ही गलती थी
हाँ मेरी ही गलती थी।।

सम्मान उसी का बढ़ गया
मिट गए गीले शिकवे सब
उसने हाँ में हाँ भर दी
फिर मैंने थोड़ी ना कर दी
और बोल दिया चुपके से
उसने मेरे कानों में
हाँ मेरी ही गलती थी
हाँ मेरी ही गलती थी।।

पश्चाताप का बहा गरल
कठिन पहेली हुई सरल
मन ही मन में बात हुई
समझौते की शुरुआत हुई
धड़कन-धड़कन से बोली
ना तो तेरी गलती थी 
और ना तो मेरी गलती थी।

समझौते से हल निकला
झगड़े का निष्कर्ष निकला
ना बड़ा ना कोई छोटा
हार मान ले ना आये टोटा
ना कर मनको छोटा
दुनियां ऐसे ही चलती है
दुनियां ऐसे ही चलती है।


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