चिंतन दीप जला मन का

 

        जिज्ञासा ज्ञान की जननी है। ज्ञान बलिदान माँगता है, नींद का, आलस्य का, सुखों का, मान का, अपमान का उसने यही किया। बलिदान कर दिया। बाधाओं के पहाड़ खड़े। अथकता का ओढ़े चोला, पढ़ना, पढ़ना फिर गढ़ना। संलग्न हो गया, निमग्न हो गया अनुकरण, अवलोकन, निरिक्षण, प्रेक्षण के सतत अभ्यास में, सुसुप्त चेतना जाग उठी। अब वह देखता है, सुनता नही। अब वह जानता है, मानता नहीं। वह देख रहा है और साक्षात् देखा है–स्वार्थ की समरेखा में सब सबके लिए मधुर हैं और स्वार्थ की विषम रेखा मे सब सबके लिए कटु हैं। कोई किसी के लिए नितान्त मधुर नहीं है और कोई किसी के लिए नितान्त कटु नहीं है। जो मधुर है, वह कटु भी है और जो कटु है, वह मधुर भी है।

       वह देख रहा है और साक्षात् देख रहा है-शक्ति-शून्य सत्ता के सम्मुख सब गर्म हैं और शक्ति सम्पन्न सत्ता के सम्मुख सब ठंडे हैं। कोई किसी के लिए नितान्त गर्म नहीं है और कोई किसी के लिए नितान्त ठंडा नही है। जो गर्म है, वह ठंडा भी है, और जो ठंडा है, वह गर्म भी है।

       वह देख रहा है और साक्षात् देख रहा है-जो दृष्टि से विपन्न है, उसके लिए चहुँ और अन्धकार ही अन्धकार है और जो दृष्टि से सम्पन्न है, उसके लिए चहुँ ओर प्रकाश ही प्रकाश है। नितान्त अन्धकार जैसा भी कुछ नहीं है और नितान्त प्रकाश जैसा भी कुछ नहीं है। जो अन्धकार है, वह प्रकाश भी है और जो प्रकाश है, वह अन्धकार भी है।

       एक तोता पिंजरे मे बैठा है। वह कुछ बोल रहा है। उसे जो रटाया गया, उसी की पुनरावृत्ति कर रहा है। तोते में स्मृति है पर चिन्तन नहीं है। मनुष्य में स्मृति और चिंतन दोनो है। मनुष्य कोरी रटी-रटाई बात नहीं दुहराता यह नयी बात सोचता है, नया पथ चुनता है और उस पर चलता है।

     एक भैसा हजार वर्ष पहले भी भार ढोता था और आज भी हो रहा है। वह हजार वर्ष पहले जिस ढंग से जीता था, उसी ढंग से आज भी जी रहा है। उसने कोई प्रगति नहीं की है, क्योंकि उसमें स्वतन्त्र चिन्तन नहीं है।

      मनुष्य ने बहुत प्रगति की है। वह पत्थर युग से अणु-युग तक पहुंच गया है। वह झोपड़ी में महल, मल्टीयो तक पहुंच गया है। उसने जीवन क्षेत्र में विकास और प्रगति की है। स्मृति और चिन्तन समृद्ध परंपरा है। यदि मनुष्य परम्पराविहीन होता तो वैसे वह पशुओं से बहुत अतिरिक्त नहीं होता। मानवीय विकास का इतिहास परम्परा का इतिहास है। अतित की अनुभूतियों के तेल से मनुष्य का  चिंतन दीप जला है और उसके आलोक में उसे अनेक उपलब्धियां उपलब्ध हुई है।

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