सर्दी ने हद कर दी
स्वेटर पहने शाल ओढ़े
फिर भी थरथर कांप रहे।
मुंह से कुछ बोले नहीं
मन ही मन से भांप रहें।
बीवी ने चुप्पी तोड़ी
पड़ी शाल भी ली ओढ़ी।
खिड़की द्वार बंद किए
ठंड कम ना हुई थोड़ी।।
सहन नहीं होती मुझसे
इस जाड़े की यह सर्दी।
जब मैंने कहा हद कर दी
वह मुझको बोली बेदर्दी।।
आओ आग जलाएं हम
तन थोड़ा गरमाएँ हम।
उसने हाँ में हाँ कर दी
वह फिर से बोली बेदर्दी।।
बच्चे संग में ताप रहे थे
मैंने कहा इतनी सर्दी।
झट से बच्चे बोल उठे
यह तो सर्दी की गुंडागर्दी।।
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